अरुणेश मिश्र
यह सेतुबंध !
किस मेधावी अभियंता ने
कर सुरुचिपूर्ण इसका प्रबंध ।
बतला दी तीनो लोकों में
भगवान राम की ही सुगंध ।
यह सेतुबंध !
यह सेतु जोड़ता नदियों से
सागर इससे जुड़ जाते हैं
भूले भटके जो लोग भ्रमित
वह सेतु ओर मुड़ जाते हैं ।
यह सेतु जगत में भिन्न भिन्न
जुड़कर हो जाते हैं अभिन्न
मानवता का है सेतु यहां
है परहित का चिर सेतु यहां
सद्भाव , विनय के सेतु अमर
जो नहीं चाहते कभी समर ।
वे क्या समझें जो रहे अंध
यह सेतुबंध !
रचनाकार- अरुणेश मिश्र, सुप्रसिद्ध साहित्यकार , पूर्व प्रधानाचार्य , सीतापुर