किसी भी भारतीय भाषा से स्पर्धा के बिना हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाना
टीम कहानीतक–नई सरकार के गठन के बाद संसदीय राजभाषा समिति की पुनर्गठन बैठक में केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह को पुनः अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति से चुन लिया गया. अमित शाह 2019-2024 तक संसदीय राजभाषा समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं.
संसदीय राजभाषा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद अपने संबोधन में कहा कि किसी भी भारतीय भाषा से स्पर्धा के बिना हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाना है . उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्षों से हम राजभाषा को आगे बढाने का काम कर रहे हैं. लेकिन पिछले दस बार वर्षों से जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है तबसे राजभाषा को आगे बढाने के तरीके में बदलाव के कारण कुछ परिवर्तन आया है . नई शिक्षा नीति में राजभाषा को आगे बढ़ाने की व्यवस्था पर जोर दिया गया है.
किसी भी भारतीय भाषा से स्पर्धा के बिना हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाना है. अमित शाह का यह कथन इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है कि वे कह रहे हैं कि हमें समस्त भारतीय भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाने पर जोर देने की बात है. वे कहते भी हैं कि हिन्दी स्थानीय भाषाएँ हिंदी की सहेली बनकर काम करें.इससे किसी भी भाषा- भाषी को यह नहीं लगेगा कि हम उस पर हिंदी थोप रहे हैं. ऐसा तब उन्होंने कहा जब देश के ही विपक्ष के नेता विदेश में बैठकर तमिल तेलगु मलयालम भाषियों पर हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं.
यह बात तब और महत्वपूर्ण हो गयी है जब पूरे देश में हिंदी दिवस का पखवाड़ा मनाया जा रहा है. हिंदी को यदि सही तरीके से स्थापित किया जाए तो हिंदी में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं. हिंदी का साहित्य बहुत समृद्ध है. हमारे हिंदी मनीषियों ने हिंदी को स्थापित करने की बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है. अमित शाह जी का यह बयान उस दिन आया है जिस दिन हम हिंदी के विराट व्यक्तित्व भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी की जन्म जयंती मना रहे थे. जो कहते हैं कि “निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय का शूल” राष्ट्र की उन्नति के लिए राजभाषा हिंदी का उत्थान आवश्यक है. कामकाज की भाषा हिंदी जब तक न होगी तब तक हम कहीं न कहीं अपने आपको ठगे हुए महसूस करेंगे.
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी स्थानीय भाषाओं में विधि की पढ़ाई की बात पर जोर दे रहे हैं.
सब मिलाकर हिंदी किसी भी भाषा की प्रतिस्पर्धा में नहीं है. हिंदी की स्वीकार्यता स्वयं में बढ़ रही है. इससे किसी स्थानीय भाषा को न तो खतरा है और न ही हिंदी की किसी भी भाषा से प्रतिस्पर्धा है. हिंदी के पक्ष में अमित शाह का यह बयान बहुत ही महत्वपूर्ण है. जिसके गर्भ में हिंदी की स्वीकार्यता का फलक बढने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
हिंदी के साथ स्थानीय भाषा भाषी लोग किसी हीन भावना के शिकार न हों बल्कि अपनी भाषा पर गर्व महसूस करें. बस याद रखें…
“हिंदी है तो हम हैं |
यह बात सदा उर मध्य
रहे ||
सोचो हिंदी बोलो हिंदी |
निज भाषा पर अभिमान करो ||
भारत माटी को कर प्रणाम |
अब हिंदी में सब काम करो”||
टीम कहानीतक हिंदी साहित्य को समृद्ध करने पर लगातार जोर दे रही है .
टीम कहानीतक समस्त देशवासियों को हिंदी दिवस पखवाड़े की हार्दिक बधाई भी देती है.
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