संग्रहालय में बेहोश चोर (लघु कथा)
अरुणाकर पाण्डेय
कल्पना कीजिए कि आप सुबह अपने काम की जगह जाकर जब अपने दफ्तर, या दुकान को खोलें और
वहाँ पर एक चोर आपको बेहोश गिरा पड़ा मिले तो कैसी स्थिति होगी ! ठीक ऐसा ही हुआ जब भोपाल
में मंगलवार की सुबह साढ़े दस बजे कर्मचारियों ने भोपाल का राजकीय संग्रहालय खोला | उन्होंने पाया
कि एक व्यक्ति अन्दर बेहोश पड़ा हुआ है और उसके पास एक बैग था जिसमें लगभग आठ से दस
करोड़ रूपये मूल्य की कलाकृतियाँ रखी हुई थीं | जो व्यक्ति पाया गया उसकी पहचान बिहार के गया के
विनोद यादव के रूप में हुई है और यह भी बताया गया है कि वह एक पेशेवर चोर है |
मंगलवार की सुबह जब संग्रहालय खोला गया तो यह देखा गया कि दो कमरों के पैनल के शीशे टूटे हुए
थे और बहुत से कीमती सामान गायब थे | मौके पर तैनात सुरक्षाकर्मी ने जब तुरंत खोजने का प्रयास
किया तो देखा कि आरोपी संग्रहालय के गलियारे में चोटिल पैर के साथ बेहोश पड़ा था | उसके बगल में
एक बड़ा बैग भी पड़ा मिला | जब उस बैग की छानबीन की गई तो पता चला कि उसमें
गुप्तकालीन,ब्रिटिशकालीन सिक्के और नवाबों के दौर के सिक्के,आभूषण,पात्र और अन्य एंटीक रखे थे |
पुलिस के अनुसार इन सब की कीमत लगभग आठ से दस करोड़ रूपये के बीच थी | इलाके के डीसीपी
रियाज़ इकबाल के अनुसार चोर ने तेईस फुट ऊँची दीवार को लांघने की कोशिश की होगी लेकिन इस
दौरान वह नीचे गिर गया होगा | उन्होंने बताया है कि आरोपी ने संग्रहालय का टिकट खरीदा और फिर
बंद होने तक संग्रहालय में ही छिपने में कामयाब हो गया | संग्रहालय बंद होने के पश्चात वह छुपी हुई
जगह से निकला और उसने एक एक कर सिक्के और अन्य कीमती सामान चुराने लगा | चोरी करने के
बाद तेईस फुट दीवार फाँदने की प्रक्रिया में वह गिर गया | आरंभिक जाँच से यह पता चला है कि इस
चोरी में उसका कोई साथी नहीं था लेकिन पुलिस इस बारे में पूछताछ करेगी |
आश्चर्य की बात यह है कि पुलिस के अनुसार वह रविवार को टिकट लेकर संग्रहालय में घुसा था और
छिप गया था | हालाँकि रविवार को संग्रहालय में अवकाश था और सुरक्षाकर्मी भी परिसर में मौजूद थे
|अतः वहाँ चोरी करना आसान नहीं था |विनोद यादव से पूछताछ करने पर पुलिस को यह मालूम हुआ
कि उसने वहाँ से निकल कर भागने की कई बार कोशिश की लेकिन पहरा देने वाले सुरक्षाकर्मियों की
वजह से उसे बार-बार वापिस छिपना पड़ रहा था | इस घटना से संग्रहालय को लेकर बहुत से प्रश्न उठ
खड़े हुए हैं | जैसे कि वहाँ पर कोई अलार्म सिस्टम नहीं लगा हुआ है और जो सीसीटीवी कैमरे लगे हैं
उनमें से अधिकतर काम नहीं करते | दरवाजे कमजोर एल्युमीनियम के बने हैं और छत भी आसानी से
टूट जाने वाली प्लास्टिक शीट की बनी हुई है | पुलिस ने यह कहा है कि संग्रहालय की इस स्थिति की
रिपोर्ट की जाएगी जिससे आवश्यक सुधार किया जा सके |
बात सिर्फ यह नहीं है कि चोरी की गई सामग्री का मूल्य आठ से दस करोड़ रूपये का था | इसके
अलावा यह सोचने की जरुरत है कि गुप्त काल और अन्य कालों की यह दुर्लभ वस्तुएँ सामाजिक स्तर
पर हमारे लिए क्या महत्त्व रखती हैं | कारण यह है कि इन दुर्लभ ऐतिहासिक वस्तुओं की प्रदर्शनी और
सुरक्षा के लिए ही संग्रहालय बनाया गया है | इन वस्तुओं के होने से हम जब अपने अतीत पर गौर
करते हैं तब परम्पराओं और अपने वैभव का बोध होता है | इसलिए इन वस्तुओं के अस्तित्व को केवल
उनके मौद्रिक आंकलन से समझने की भूल नहीं करनी चाहिए, वे हमें हमारी अपनी सामाजिक कहानी भी
बताते हैं | यदि वह दीवार नहीं होती और कुछ सुरक्षाकर्मी चक्कर न लगा रहे होते तो यह दुर्लभ वस्तुएँ
अंततः चली ही गई थीं, लेकिन यह घटना अपने आप में अलार्म है कि हम अपनी संस्कृति और इतिहास
के धरोहर की सुरक्षा के प्रति सचेत और संजीदा हो जाएं, यही इस घटना की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी |
इसके साथ यह जाँच भी होनी चाहिए कि इतने समय तक चोर छिपा रहा और बार-बार भागने का प्रयास
करता रहा लेकिन किसी को भनक तक नहीं लगी | यदि वहाँ कड़ा पहरा नहीं होता तो चोर भाग गया
होता | वह तो दीवार नहीं फाँद पाया इसलिए चोटिल होकर बेहोश हो गया और अंततः वहीँ गिरा पड़ा
मिला | इसके लिए सुरक्षा संबंधी व्यवस्था में क्या परिवर्तन किये जा सकते हैं इस पर विस्तार से काम
करना चाहिए |
लेखक दिल्ली विश्वविद्य़ालय मे हिन्दी के प्राध्यापक है.