न मानवीय मूल्य की रही कहीं भी साधना
ठाकुर प्रसाद मिश्र
न मानवीय मूल्य की रही कहीं भी साधना |
मिटा विधान सत्य का असत्य की आराधना ||
अल्लाह और राम भी फंसे विवाद फंद में |
कराहती है रीतियाँ कुरीतियों के द्वन्द्व में ||
खद्योत पुच्छ का प्रकाश खींचता है भीड़ को |
आक्रोश धर्म दम्भ का उजाड़ता सुनीड़ को ||
विकल विहंग भीगता है मेह वारि धार में |
किरात कर कुल्हाड़ियां है चल रही सुधार में ||
गल्प की प्रधानता में तथ्य सूत्र हीन है |
वरे जो स्वार्थ पूर्ण नीति वही समीचीन है ||
गुरु नहीं न शिष्य योग्य है युगल उलाहना |
उर व्यथा के वोझ से नि: शब्द है साधना ||
कवि प्रसिद्ध साहित्यकार हैं,
प्रकाशित हिंदी उपन्यास ” रद्दी के पन्ने “