रमेश कुमार मिश्र
मन मानस में हरि भक्ति बसी |
अब चित्त विषय रस हेरत नाहीं ||
रसना रसिका बनी रामहिं की |
अब दूजा नाम कहावत नाहीं ||
नयनन में छवि छवि राम बसी |
अब आन छवि उर आवत नाहीं ||
मन चातक बन सियाराम भजे |
मन स्वाति के मेघ लुभावत नाहीं ||
रचनाकार -एम. ए. हिंदी व पी. जी. डिप्लोमा हिंदी पत्रकारिता दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली