अरुणाकर पाण्डेय
एक प्रसिद्ध चुटकुला है । एक शिक्षक ने अपनी कक्षा में शिष्यों से पूछा कि बताओ अमरीका दूर है या चांद? एक बच्चे ने तुरंत उत्तर दिया कि “सर हमें तो चांद पास लगता है और अमरीका बहुत दूर क्योंकि चांद को हम रोज रात में देख सकते हैं लेकिन अमरीका को नहीं।”
शिक्षक ने बताया कि चांद दिखने पर भी बहुत दूर है और अमरीका बहुत पास । देखा जाए तो हास्य विनोद से परे जैसे यह आज की सच्चाई हो गई है क्योंकि यदि इस चुटकुले का गंभीर अध्ययन किया जाए और इसे व्यापकता प्रदान की जाए तो पता चलता है कि आज समाज सूचना की आंधी में बहुत से भ्रमों का शिकार वैसे ही हो जा रहा है जैसे कि क्लास का बच्चा अमरीका और चांद को लेकर हो रहा था ।
इसलिए आज जब हम यंत्रों और तकनीक से घिरे पड़े हैं तब हम पहले से कहीं ज्यादा भ्रमों में भी जीने को अभिशप्त हैं। आए दिन इसकी पुष्टि मीडिया करता ही है।कभी मासूम बच्चे गलत भाषा और हरकतें करते देखे जा सकते हैं ।कभी किसी के पैसे गलत लिंक के माध्यम से लूट लिए जाते हैं । कभी कोई गलत विज्ञापन का शिकार होता दिखता है और कभी तो सुरक्षा व्यवस्था ही खतरे में आ जाती है। अभी हाल ही में जब स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी दी थी तो उस दिन देश की राजधानी हिल गई थी। लेकिन अब हमने उस खबर को बहुत पीछे छोड़ दिया और भुला दिया। उस खबर को शिक्षा की दृष्टि से याद रखने की आवश्यकता है क्योंकि वह हमें बता रही है कि यंत्र और तकनीक हमें सूचनाओं से तो लैस कर सकते हैं लेकिन वह विवेक हमारे भीतर उत्पन्न नहीं कर सकते जिसके लिए शिक्षक की आवश्यकता होती है।
इसके लिए यह भी जरूरी है कि शिक्षक को स्वयं ही बहुत सशक्त चरित्र और आधार वाला व्यक्तित्व का अभ्यासी होना चाहिए। शिक्षक को बहुत कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा। तभी वह एक मजबूत और जुझारू समाज बना पाएगा । इसके लिए कबीरदास के इस दोहे को समझने की जरूरत है
“जाका गुरु है आंधरा
चेला है जाचंध
अंधे अंधा ठेलिया
दोनों कूप परंत “
जब गुरु और शिष्य दोनों ही अज्ञानी हों तो दोनों का भ्रमों में फंसकर बर्बाद हो जाना ठीक उसी प्रकार तय है जैसे अंधा ही जब एक अंधे को रास्ता दिखाता है तो दोनों ही कुंए में गिर जाते हैं। इसलिए आज शिक्षक को भी बहुत सजग होने की आवश्यकता है अन्यथा आज की यांत्रिकता संभवतः मनुष्य का अंत बहुत जल्दी कर देगी ।