पन्द्रह अगस्त

ठाकुर प्रसाद मिश्र

भारत का राष्ट्रीय पावन पर्व तो विश्व विख्यात है ही इसदिन हमारा देश सन् 1947 में आजाद हुआ था। आजाद जीवन तो हर जीव के लिए वांछनीय है, और यह हमें अनेक बलिदानों के बाद प्राप्त हु‌आ है। आजादी के लिए देश की हर आत्मा जब तड़पी तब हमने अपने देश में अपनी व्यवस्था के अन्दर अधिकार मांगा और मुट्ठी भर आक्रान्ताओं को देश से भगा पाए। आजादी हो या कोई वस्तु बड़े परिश्रम से ही मिलती है।

कभी-कभी यह प्रश्न उठता है कि हम आजादी के नाम पर उत्साहित तो बहुत हो जाते हैं, लेकिन क्यों? उस आजादी में हमारा क्या योगदान रहा उत्तर मिलता है इस आजादी के लिए हमारे पुरखों ने लड़ाई लड़ी, आन्दोलन किया, फांसी पर झूले खून बहाया तब आजादी मिली। अरे भाई प्रकृति ने तो सबको खुली हवा में साँस लेने के लिए आजाद पैदा किया है यह तो प्रकृति की सहज प्रक्रिया है तो आजादी के नाम पर  इतना उत्साहित होने की क्या आवश्यकता है। हालांकि नई पीढ़ी जिसने गुलामी का दंश  नहीं झेला है उन्हें भूलने भी लगी है जिन्होंने अपने अप्रतिम त्याग और सौर्य से हमे आजादी दिलाई।

अब प्रश्न उठता है कि हम आजादी के लिए इतने लालायित क्यों थे, जीवन तब भी था जीवन अब भी है, उत्तर मिलता है तब हम गुलाम थे। मुट्ठी भर क्रूर आकांताओं के चरणों में भारत जैसे महान ऐश्वर्य शाली देश जो अपने ज्ञान विज्ञान वीरता ऐश्वर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध था, के लोग तमाम यातना और अपमान सहते हुए बैठे थे। गुलाम बनकर यातना का जीवन क्यों जी रहे थे कैसे फिर 1947 में आजाद भी हो गए। अब प्रश्न उठता है कि गुलामी जैसी विषम परिस्थिति एवं निन्दित काल में पहुंचे कैसे? आजादी का जश्न मनाने से ज्यादा हमें इस प्रश्न पर विचार करना पड़े‌गा। सोचना पड़े‌गा इस देश के उस घोष पर :

अपिस्वर्ण मई लंका रम्ये लक्ष्मण रोचते,

जननी जन्मभू‌मिश्च च स्वर्गादपि गरीयसी ||

जिसने सोने का नगर जीतकर भी उसी शत्रु परिवार को वापस दे दिया, जिसके  लिए स्वर्ग भी जन्म भूमि से कम तर था  उसी महानायक के वंशज मुट्ठी भर दस्यु, आकान्ताओं के दास बन गए। यह हमारे आज के लिए ही नहीं बल्कि युगशर्म की बात है। क्या कभी इसपर भी विचार होता है। आखिर वह कायर काल आया कैसे? कभी सोचा हमने सोचने का विषय तो सत्यसः उस नरदेहधारी पूर्ण पुरुष का मानव चरित्र है जो सम्पूर्ण मानवता को ऐश्वर्य, पूर्ण सुरकी जीवन की प्रेरणा देता है। आज भी हमने अविवेक पूर्ण आचरण करते हुए उसे धर्म ग्रन्थ बता कर केवल पूजा का विषय बताकर केवल घंटी बजाने तक ही सीमित कर दिया है और अब फिर हमारा समाज उसी कायर काल की राह पर चल पड़ा है, जो लोभ, मोह काम क्रोध ईर्ष्या प्रपन्च तथा स्वार्थ एवं तुष्टीकरण करके निज हित साधन में लग गये हैं कितने ही अविवेकी कुलांगार अपने ही देश के आदर्शो के चरित्र हनन में लगे हुए हैं। सावधान ए कुमार्ग गामी निजी हित चिंतन में देश को पुनः उसी कायर काल की तरफ ले जाना चाहते हैं। अपने देश, अपने राष्ट्र और अपनी आजादी को बचाना है तो इन मारीच एवं कालनेमियों की पहचान कर इनका वल पूर्वक तिरस्कार करना ही होगा, तभी हमारा देश और हमारी प्यारी आजादी कायम रहेगी।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं।

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