पीपल हमारे लिए प्रकृति का वरदान है.आध्यात्मिक दृष्टि से पीपल हमारे तम को हरता है तो पर्यावरण की दृष्टि से पीपल हमें बहुत से रोगों से मुक्ति दिलाता है और प्रकृति को संतुलित रखने में सहायक होता है. प्रस्तुत कहानी का आधार यही है

रमेश कुमार मिश्र 

रुक्मिणपुर गांव के पूरब एक बहुत सुंदर सुसज्जित बड़ा तालाब था.  जिसके बगल में एक बाग थी. बाग में आम,महुआ जामुन,गूलर,शीशम के पेड़ के साथ  एक विशालकाय पीपल का पेड़ भी था. भीषण गर्मी की दोपहरी में गांव के लोग अपनी बसहेटा चारपाई लेकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे इक्टठा होकर गर्मी से राहत पाते थे. बच्चे अपनी किताब और कापियाँ लेकर जाते कुछ देर वहाँ उपस्थित अपने गांव के योग्य लोगों से पढ़ते और फिर जी भरकर खेलते भी. कुछ तसेडी़ ताश के पत्तों के साथ खेल खेलते तो कुछ लोग ढ़ोलक ,हारमोनियम और झाल के साथ जाकर गीत गवनई करते थे . खुशनुमा माहौल की केंद्र वह बाग सभी के लिए सुखद थी. बगल के तालाब में स्वच्छ पानी हमेशा रहता था. गर्मी की वजह से यदि पानी कम होता तो सरकारी ट्यूबेल से उसमें पानी भर दिया जाता था . तालाब भी बहुत पुराना था. पंचायती योजना में उसका सुंदरीकरण गांव के परधान ने करा दिया था. दोपहरी में कुछ बच्चे बूढ़े सभी उस तालाब में नहाते और कुछ बच्चे तो तैराकी सीखते थे. उस तालाब में मछलियाँ भी बहुत थीं.

गांव में शिक्षा का आलम यह था कि बिना किसी कोचिंग के गांव में कुल 11-12 आई ए एस पी सी एस एस स्तर के अधिकारी थे. सरकारी नौकरी से खाली तो कोई भी घर नहीं था.

खुशहाल और समृद्ध गांव की अपनी बात ही निराली थी, और इस विकास में जो सबसे बड़ी भूमिका थी उस बाग की थी . जहाँ अपनत्व का समागम होता था. किसी के भी बच्चे को कोई भी बिना स्वार्थ पढ़ा देता था. कोई भी बच्चा किसी के घर भी भोजन कर लेता था माताएं कुछ आपत्ति दर्ज न करती करातीं थीं.

समय बीता बुजुर्ग लोग एक- एक करके परलोक गामी हुए . नई पीढ़ी शहर वासी होने लगी. अब गांव की बाग भी विरान रहने लगी . कुछ दिन बाद आपसी सलाह के बाद बाग को बेंचने का निर्णय हुआ और ठेकेदार ने पैसे देकर मशीनों के द्वारा पेड़ों की कटाई शुरू कर दी. वे पेड़ जो न जाने कितनी पीढ़ियों के गवाह थे , चंद पैसों की लालच में बेंचे गए और खरीदने वाले ने बेरहमी काटना शुरू किया तो कट -कट कर धड़ाम – धड़ाम गिरने लगे. देखते – देखते बाग का अस्तित्व मिटने के कगार पर पहुँच गया था.

शाम की बेला हो चुकी थी ठेकेदार ने पीपल को यह कहकर छोड़ दिया कि शाम के समय पीपल का पेड़ नहीं काटते हैं. सुबह इस वृक्ष पर हाथ लगाया जाएगा . है भी तो इतना विशालकाय कि चार पांच मशीनें चार – पांच दिनों में ही काट पाएंगी इसे. कहकर सब चले गए. सुबह हुई मशीनों के साथ मजदूर पहुंचे पीपल के पेड़ की एक डाल काटकर गिरा दिए.

उसी वक्त उधर से आचार्य चतुरसेन शास्त्री जी गुजर रहे थे. शास्त्री जी वेद पुराण के ज्ञाता थे .बाग की दुर्दशा को देख कुछ देर रोए फिर दहाड़ते हुए बोले रे मूर्ख ठेकेदार  तुझे यह नहीं पता कि पीपल का वृक्ष नहीं काटा जाता है. किस जाति का है. ब्राह्मणों के गांव में आकर तुझे यह तो समझना चाहिए कि आखिर तू कर क्या रहा है.? ठेकेदार सकपकाया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया बोला  मालिक  मैंने तो इस पीपल को भी अन्य पेड़ों की भांति खरीदा है. उसके नाते ही इसे भी काट रहा हूँ. छड़ी लकलकाते हुए शास्त्री जी बोले धूर्त कहीं का बहुत नीच सोच का है क्या तुझे पता भी है कि तू क्या बोल रहा है? तेरी अवकात है कि तू पीपल के वृक्ष को खरीद सकता है. फिर ठेकेदार हाथ जोड़कर बोला पंडित जी नीच ऊंच हम नहीं जानते हैं ये तो बेंचने वाले जानें कि उन्होंने पीपल बेंचकर नीचता का परिचय दिया कि ऊंच होने का. मैं व्यापारी हूँ. व्यापार में खरीदना और बेंचना ही जानता हूँ . 

शास्त्री जी चेतावनी देते हुए बोले सुन ठेकेदार अब एक भी पत्ती अगर इस पीपल की गिर गई तो तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा . सब मशीनें रुक गयीं. 

शास्त्री जी ने एक बच्चे से उस बाग के सभी हिस्सेदारों को बुलवाया. शास्त्री जी के लिए घरों से शरबत मीठा चबैना दही कोई न कोई लेकर आने लगा .शास्त्री जी की विद्वत्ता का आलम यह था कि नक्षत्रों और मुहूर्त तो अंगुलियों पर गिने हुए थे . सब आते जा रहे थे और शास्त्री जी के चरणों में शीश नवाते  जा रहे थे. 

सब आ गए पूछकर शास्त्री जी ने पूछा कि तुम सब ए बाग क्यों बेंच डाले. उत्तर मिला बाग का औचित्य न था बहुत से पेड़ सूख रहे थे . शास्त्री जी ने कहा अच्छा. सब बेंचे सब बेंचे यह पीपल वृक्ष क्यों बेंचे तुम सब.  हरिहर चौबे ने कहा शास्त्री जी पीपल बहुत पुराना हो गया था दाम अच्छा मिल गया सबने सहमति बनाकर बेंचा हैं.

शास्त्री जी थोड़ी देर के लिए मौन हो गये. फिर कड़ककर बोले रे ! देवीकांत तुझे शर्म न आयी कि जब इस बाग के पेड़ पुराने हो रहे हैं तब तुम सबने यहाँ कितने पेड़ लगाए और लगाकर इंतजार क्यों न किया कि उन पौधों के बड़ा हो जाने पर इन्हें कटवाते नियम तो यही है फिर… हरिहर चौबे की तरफ छड़ी लकलकाते हुए बोले रे ! हरिहरवा  इसी दिन के लिए मैंने तुझे संस्कृत पढाई थी . कि तू पीपल के वृक्ष को पैसे से तौले. कान खोलकर सुन लो सब अगर तुम सबने इस पीपल के वृक्ष को कटवा दिया तो इस गांव में अकाल पड़ेगा, महामारी फैलेगी आग लगेगी और सब कुछ स्वाहा होने में देर न लगेगी.

देव वृक्ष हैं पीपल में श्री कृष्ण का वास होता है . वह गांव बड़ भागी होता है जिस गांव में पीपल के पेड़ होते हैं. पितर वास करते हैं पीपल में यह सब जानते हो तुम सब. ब्राहमण होकर कम से कम इस महा अपराध से बचो. जानते हो गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि –“अश्वत्थ: सर्व वृक्षाणां”  अर्थात सभी वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ. ऋग्वेद में पीपल को कल्पवृक्ष कहा गया है और बौद्ध ग्रंथ में पीपल को बोधिवृक्ष.

स्कंद पुराण में बताया गया है कि —

मूले विष्णु: स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च. 

नारायणस्तु  शाखासु पत्रेषु भगवान हरि:.

फलेअच्युतो न संदेह सर्व देवै: समन्वित:

से एव षिणुद्रुरुम एव मूर्तो महात्भि:

सेवित पुण्य मूल: यस्याश्रय: पापसहस्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुधो गुणाढ्य:

मतलब पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव शाखाओं में भगवान नारायण पत्तियों में श्री हरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदा -सदा निवास करते हैं . 

शास्त्री जी क्रोध से आग बबूले हो रहे थे और बोले जा रहे थे यथा श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे हों… आगे कहते हैं जपाटों न जाने तुम सबकी बुद्धि कहाँ  घास चरने चली गयी है — 

मूलतो ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रूपिणे,. 

अग्रत: शिव रूपाय वृक्ष राजाय ते नम:.

आयु: प्रज्ञां  धनं धान्यं सौभाग्यम् सर्व सम्पदाम्.

देहि देव महावृक्ष: त्वामहं शरणं गत:

मतलब पीपल की मध्य भाग और अग्रभाग  ब्रह्मा विष्णु और महेश का निवास माना जाता है.

एक कथा मिलती है पद्मपुराण के अनुसार माता पार्वती के श्राप के चलते भगवान शंकर बरगद, ब्रह्मा को पाकड़ के रूप में अवतार लेना पड़ा था. वहीं भगवान विष्णु पीपल के वृक्ष के रूप में.

अब तुम सब जरा जोर दो अपने दिल दिमाग में कि तुम जिस देवता की अलग- अलग मूर्तियों की पूजा करते हो वे सब एक ही वृक्ष में बसते हैं, और प्रकृति देव बनकर हमारे ऊपर आने वाले तमाम संकटों को खुद झेलकर हमारी रक्षा करते हैं ऐसे वृक्ष को काट या कटवा देना कितना उचित है. 

संस्कृत का ज्ञान रखने के नाते मुझे कुछ आयुर्वेद की भी जानकारी रखता हूँ. पीपल हमारे वातावरण को शुद्ध रखता है. पीपल हमें सबसे ज्यादा आक्सीजन देते हैं.  दांत की बीमारी हो या स्वास रोग हो या फिर चर्मरोग हो बहुत सी बीमारियों में हमारे ए पीपल की जड़ें हिला पत्तियाँ या तने अत्यंत गुणकारी हैं .  अब ऐसे में हम पीपल के वृक्ष का दाम लगाकर उसे कटवाकर क्या दैवीय और प्राकृतिक आपदा गले नहीं लगा रहे हैं. 

आज सोमवती अमावस्या है आज के दिन तो मान्यता है कि साक्षात विष्णु माता लक्ष्मी के साथ देववृक्ष पीपल में आकर निवास करते हैं. और तुम सबकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी कि आज ही के दिन तुम सब पीपल कटवा…

 अब बोलो अब भी पीपल कटेगा क्या, पूरे गांव के लोग एक स्वर में बोल उठे कि शास्त्री जी बहुत भूल हो गयी थी. आज भगवान श्री कृष्ण के वेश में आकर हम सभी को पाप का भागीदार होने से बचा लिया है. 

शास्त्री जी बोले अब हमारी बात मानिए आप सब लोग कोई ट्रैक्टर लेकर जाए नर्सरी और जितने भी पौधे पीपल के मिलते हैं सब ट्राली में भर ले आओ हम सब इस बाग में आज पीपल ही पीपल लगाएंगे ताकि हमारी बाग का वही स्वरूप जल्द से जल्द बन जाए.  सैकड़ों पेड़ आए सबसे पहला पीपल का पौधा शास्त्री जी ने 

मंगलम् भगवान विष्णु: मंगलम् गरुड़ ध्वज:

मंगलम् पुण्डरीकाक्ष: मंगलाय तनों हरि: 

वृक्ष हमारे जीवन की जरूरी जरूरत हैं हम सभी को वृक्षों की रक्षा करनी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाना चाहिए. सबने शास्त्री जी की इस बात में हां में हां मिलाया. और कुछ वर्षों में ही वृक्ष लगाओ की मुहिम से पूरा इलाका हरा भरा हो गया और फिर वही चौपाल उस बाग में लगने लगी.

One thought on “गांव का पीपल ”
  1. वास्तव में हमें वृक्षों की आवश्यकता और उनके महत्त्व को समझना होगा। मैंने कहीं पढ़ा था कि एक व्यक्ति के 60वर्ष के जीवन निर्वाह के लिए 22पेड़ों की आवश्यकता होती है। सोचनीय है कि उसके औसत में हम कितने पेड़ लगाते हैं। इस कहानी के माध्यम से आपने औषधीय गुणों से भरपूर पीपल वृक्ष की महत्ता पर सर्वतः प्रकाश डाला है। आपकी लेखनी और लेखन शक्ति को बारंबार प्रणाम।

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