रमेश कुमार मिश्र
दादी ने आवाज दी कि अरे रामू बेटा सांझ हो गयी है तुमने अभी तक ड्योढ़ी पर दीपक नहीं जलाया. बेटा सूरज के ढलने के साथ ही दीपक की ज्योति जल जानी चाहिए. रामू ने तेज आवाज में कहा कि दादी तुम्हारी आंख की रोशनी कमजोर हो रही है मैंने तो दीपक सूरज के रहते ही जला दिया था. दादी डंडा लेकर ठेगती हुई दरवाजे पर आयीं और टिमटिमाते दीपक को देखकर बोलीं रामू बेटा जब दीपक की बाती में फुलझड़ी लग जाए तो इसका सिर काट देना चाहिए , तभी तो यह अच्छे से रोशनी देता है, तुम बेमन का दीपक जलाकर फुर्र हो गये . अब यह ऐसे जल रहा है कि जैसे बेचारा खुद की रोशनी के लिए रो रहा हो. यह मुई बिजली भी गजब है दिन के समय रहती है और जैसे ही अंधेरा होने लगता है फुर्र हो जाती है. भगौती ले जाएं चंदनपुरा गांव के लाइन मैन को जो पिछले महीने की आंधी में टूटकर गिरे खंभे को अभी तक ठीक न करा पाया, न जाने फिर कितने महीने बाद बिजली आएगी इस गांव में. मुआ मुहं उठाकर बिजली के मीटर की रीडिंग लेने आ जाता है.आए अबकी बार रीडिंग लेने उसकी हड्डी पसली एक न कर दी तो मेरा नाम भी प्रेमावती नहीं. अबकी बार उसकी धुनाई होनी तयं है. यह सब बुदबुदाते हुए दादी अपने विस्तर पर वापस पहुँच गयीं.
घर के अंदर दाखिल रामू ने कहा दादी क्या बुदबुदाती रहती हो राम राम करो सब ठीक हो जाएगा. दादी ने कहा अच्छा राम राम करने से बिजली ठीक हो जाएगी क्या और बिल का क्या…? रामू ने कहा अरे दादी राम राम करने से संतोष और साहस आएगा. मैं एक दिन पढ़ लिखकर जब बड़ा बनूंगा तो जनरेटर लगवा दूंगा और सुना है सोलर पैनल भी तो… दादी राम राम करने से बिजली न ठीक होगी लेकिन पाप जरूर कटेंगे . और फिर जो वर्षों से विपत्ति झेल रही हो उससे मुक्ति भी तो मिलेगी.
सही कह रहे हो बेटा विपत्ति तो पिछले कुछ दिनों से पीछे ही पड़ गयी है. बेटा मैं उस घराने की बिटिया हूँ जो लोग उस जमाने में हथिया नसीन थे. जानता है रामू बेटा जब मेरी शादी हुई तो तुम्हारे परदादा पांच सौ बारातियों के साथ बारात लेकर मुझे व्याहने गए थे. ग्यारह तो बनारसी पंडित विद्वान गए थे. सात हाथी और चौदह घोड़े भी लेकर गए थे. उस जमाने में वह बारात मिशाल थी. हमारे बाबा और बाबू जी भी कम नहीं थे. पूरे दो हजार लोगों का भोजन और मिठाई बनवाए थे. और सब कुछ शुद्ध देसी घी में.सब बाराती घराती छक कर खाए थे. और तुम्हारे बाबा लोग उस जमाने की बनारस की मशहूर की मशहूर रंडी की नाच भी लेकर गए थे. दोनों तरफ के पंडितों में खूब शास्त्रार्थ भी हुआ था कोई किसी से कम नहीं. और दूसरे दिन जनवासे में जो महफ़िल सजी थी तो लोग बताते हैं इत्र की बोतल और सूखे मेवे के बोरी खुल गयी थी. बहुत दिनों तक लोग कहते रहे कि वैसी महफ़िल फिर कभी न सज पायी .
बेटा शाम को आठ बजे के करीब शादी शुरू हुई तो ऐसी पांव पुजाई हुई की पूरी रात चलती रही. न जाने कितने हंडा, लोटा, गगरा, परात और थार चढ़े. तीसरे दिन बारात विदा होने पर तुम्हारे दादा वहाँ पांव पुजाई और खिचड़ी पर मिले सामान तीन लढ़िया में लदवा कर लाए थे बेटा. और तीन साल बाद जब हमारा गौना हुआ तो हमारे बाबू और दादा ने पांच लढ़िया भर के खाझा, लड्डू, बतासा और ठोंकवा और बहुत कुछ भेजवाए थे, फिर चौथी पर बहुत लेकर आए थे. पूरे चंदनपुरा के अगल- बगल के पांच गांवों में तो बायन बंटा था. वह समय अलग था बेटा. पूरे दिन तो दूल्हन की मुहं दिखाई चलती थी. मैं तो एक मिनट के लिए भी दिन में आराम नहीं कर पाती थी. उस समय कोई भी मुझे मुहं दिखाई में कम से कम पांच रूपए से कम नहीं देता था. कुल सात हजार रूपये तो मुझे मुहं दिखाई के मिले थे. जिससे हमारी सासू मां ने हमारे लिए बहुत से सोने चांदी के गहने बनवायीं थीं. रानी थी मैं अपनी इस ससुराल की. आठ -दस नौकरानियां हमेशा घर पर पड़ी रहती थीं. हमारी सासू माँ भी बहुत दिलवाली थीं शाम को जब नौकरानियां घर जातीं थीं तो बखार में से कभी चावल कभी गेहूँ कभी चना कभी मटर उन सभी को कुछ न कुछ जरूर देतीं थीं. कहतीं थीं कि गरीब हैं बेचारी सब, इनके बच्चे भूखे नहीं रहने चाहिए.
मैं भी कौन सा कम थी उस जमाने की चौथी पास थी. प्राइमरी स्कूल के लिए डिप्टी साहब कई बार तुम्हारे बाबा से बोले कि ठकुराइन जी जब इतनी पढ़ी लिखी हैं तो सरकारी स्कूल में नौकरी लगा देता हूँ आसानी से हो जाएगा बच्चों को पढ़ाया करेंगी. लेकिन तुम्हारे बाबा मना कर दिए. तुम्हारे बाबा घर की औरतों को नौकरी कराना शान के खिलाफ समझते थे. सच बताऊँ बेटा हमारे तो भी ठाट थे, जिसकी सेवा में आठ दस नौकरानियां हों वह भला नौकरी काहे करे.
फिर एकाएक दादी फूट- फूट कर रोने लगीं. बोलीं इसी को कहते हैं नसीब. किस्मत फूटी तो राजा से रंक होने में देर न लगी. समय बहुत बलवान होता है बेटा समय को कभी चुनौती नहीं देना चाहिए. कभी- कभी सोचती हूँ कि मालगुजारी की वसूली में तुम्हारे बाबा गरीबों से बहुत सख्ती बरतते थे. भला किसी गरीब को भूखा रखकर किसी की औलाद सुखी रही है क्या? गरीब की हाय राज- रियासतें खा जाती हैं. यही हमारे परिवार के साथ भी कुछ हुआ.
रामू लैंप की बत्ती धीमी करता हुआ बोला अब भगवान के लिए चुप भी हो जाओ दादी. यही बात कितनी बार मुझे सुना चुकी हो. जब मैं पढ़ने बैठता हूँ तो तुम्हारी राम कहानी शुरू हो जाती है. तुम्हें मेरे अलावा कोई सुनाने वाला नहीं मिलता और मुझे कोई और बतियाने वाला नहीं मिलता है.
थोड़ी देर के लिए दादी चुप हो गयीं और फिर थोड़ी देर बाद फिर खुद से बुदबुदाने लगीं. रामू बेटा तुम ही मेरे अंतिम कुल दीपक हो, मेरी उम्मीद के आखिरी चिराग हो. सब कुछ तो मेरी आँखों के सामने ही खत्म हो गया. तेरे बाबा की जाने की उम्र नहीं थी कम उम्र में ही हार्टअटैक उन्हें उड़ा ले गया, और तेरा बाप जो पढ़ने में इतना तेज था सुंदर सजीला जवान था उसे शराब के साथ सेवाती बाई पसंद आ गयी. वह इतनी बड़ी जागीर छोड़ कोठे वाली के कोठे का मालिक हो गया. तेरी माँ यह अपमान सह न सकी और उसने दूसरा घर बसा लिया. बचा तू और मैं और तेरे ननिहाल से मिली कपिला गाय से उत्पन्न गाय . तुझे दूध पिलाने वाली असली माँ तो यही अपनी कपिला गाय ही है. बेटा अपनी गाय पशु प्रवृत्ति की होकर भी कभी खूंटे से पगहा तोड़कर नहीं भागी. पशु होकर भी मर्यादा में रही और दहलीज की इज्जत रखी. हालांकि मेरे लाल तू भी तो अभी केवल ग्यारह वर्ष का ही है लेकिन उसका बहुत ख्याल रखता है. हे विधाता! मेरे इस सांझ के दीपक को कभी किसी की नजर न लगे. लैंप की बत्ती बुझाती हुई दादी ने कहा.
समय बीता रामू अपनी दादी की देखरेख में पढ़ाई -लिखाई करता हुआ 40 हेक्टेयर परती पड़ी जमीन के कुछ हिस्से को ट्रैक्टर द्वारा वर्ष प्रतिवर्ष समतल कराकर उनमें बटाई के द्वारा फसलें लगवाने लगा. दसवीं की परीक्षा जिले में प्रथम स्थान के साथ पास हुआ . रामू ग्यारहवीं कक्षा में कृषि विज्ञान से पढ़ाई करने का निश्चय किया. कृषि की पढ़ाई के दौरान रामू जिस भी फसलों की नई किस्मों और तकनीक को अपने घर की खेती पर लागू करवाता. लेकिन बाहरी आमदनी नहीं होने से आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. वह अपनी पढ़ाई में खूब मेहनत करने लगा. कृषि में बी.एस .सी और एम. एस .सी विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडलिस्ट होने के बाद शोध करने के बाद रामू अर्थात रामेश्वर का उसी विश्वविद्यालय में कृषि वैज्ञानिक के पद पर चयन हो गया. लेकिन रामू ने उस नौकरी को न करने का मन बना लिया था. क्योंकि उसकी दादी उससे कहा करती थीं कि बेटा नौकरी तो नौकर बना देती है और पराधीन कर देती है. खेती तो सुख का साधन है. वह उसे सुनाया करती थीं….. फिर हम सब जिस देश में जन्में हैं उसका नाम भारत है. और जिसका मुख्य व्यवसाय खेती है . इसलिए ही इस देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है.
रामेश्वर के इस फैसले से शशि खुश नहीं थी. उसने रामेश्वर से कहा कि जब तुमसे मैं बी.एस .सी में मिली तो मुझे लगा कि तुम प्रतिभाशाली होने के साथ आधुनिक सोच के भी हो, लेकिन तुम तो ठहरे आज भी गांव वाले. अरे जब गांव की धूल मिट्टी में ही तुमको रहना था तो फिर यहाँ विश्वविद्यालय में टापर बनने की क्या जरूरत थी? . मुझे तो तुम्हारी समझ पर तरस आ रही है. जिस नौकरी को पाने के लिए अपने देश में न जाने कितने पीएचडी धारक कितनों के जूते चाटते रहते हैं वह तुम्हें आराम से मिल गयी तो छोड़ रहे हो. गजब सोच है साहब की. एक बात सुन लो रामेश्वर अगर तुम गांव गये तो मुझे तो भूल ही जाना. मैं शहर में पैदा हुई हूँ गांव की गंदगी में नहीं जाना मुझे.
जब जिंदगी ने बड़े पद, बड़े घर और बड़ी गाड़ी पर बैठने और रहने का अवसर दिया तो चल दिए गांव की मिट्टी में काले और पीले होने. आखिर ऐसा गांव में है क्या?
गांव में मेरी दादी है. वही दादी जिसने मेरी माँ और मेरे पिता दोनों के छोड़ जाने के बाद भी असह्य वेदनाओं को सहती हुई मुझे पाला है शशि.और सुनो तुम जिसे बड़े शहर का बड़ा घर कहती हो उतने में तो हमारी कपिला गाय बांधी जाती है. रही बात बड़ी गाड़ी, ए सी कूलर आदि की तो आज गांवों में लोग शहर से अच्छी जिंदगी जी रहे हैं. और शशि मेरे गाँव में मेरी बहुत जमीन है. रामेश्वर की बात खत्म नहीं हुई थी कि शशि बोल पड़ी वैसे कितने करोड़ की जमीन है तुम्हारे गांव में तुम्हारी. घूमते हुए रामेश्वर ने कहा पैतृक जमीन माँ होती है शशि, और पैतृक जमीन और माँ दोनों का मूल्य नहीं लगाया जाता है. दोनों पूज्या और अनमोल हैं. अगर तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है तो प्लीज फिर आगे से…..
शशि जानता हूँ तुम्हारे पिता बहुत बड़े व्यापारी हैं. उन्होंने तुम्हें आज तक खरीद बेंच और मकान का क्षेत्रफल ही समझाया लेकिन तुम्हें यह जरूर समझना चाहिए कि अपनी माटी और जमीर का सौदा खानदानी लोग नहीं किया करते हैं. और सुनो मकान रहने के लिए होते हैं अहंकार का प्रदर्शन करने के लिए नहीं.
शशि चुपचाप रामेश्वर की खुद्दारी देखती रही फिर उठी और अपने रूम पर चली गयी . थोड़ी देर बाद अपने ब्रीफकेस के साथ रामेश्वर के आवास पर वापस आ गयी और बोली अब मेरा भी फैसला यही है कि मैं भी तुम्हारे साथ गाँव चलूंगी .
रामेश्वर ने कहा अरे ऐसे नहीं अगली बार चलना और अभी चलोगी तो तुम्हारे बप्पा पूरे शहर में इश्तहार लगवा देंगे कि रामेश्वर मेरी बेटी शशि को भगाकर ले गया.
चुप रहो तुम ऐसा कुछ नहीं होने वाला है मैंने पापा और मम्मी दोनों से बात कर ली है और बता दिया है कि मैं तुम्हारे साथ जा रही हूँ. थोड़ी देर में मम्मी- पापा यहीं हास्टल पर आ रहे हैं.
कुछ देर शशि के मम्मी- पापा हास्टल पहुँच गए. और रामेश्वर से बोले बेटा तुम काबिल हो तुम गांव में रहो या शहर जहाँ भी रहोगे अवव्ल ही रहोगे.और मेरी बेटी तुम्हारे साथ खुश रह लेगी. बेटा यह सच है कि व्यापार में हमने खरीदना और बेंचना ही सीखा लेकिन गांव की मिट्टी से हम आज भी जुड़े हैं. इसलिए ही पिता जी की मृत्यु के बाद आज भी हमारे हिस्से की जमीन हमारे भाइयों के पास ही है. हम किसान के बेटे हैं धरती अनमोल है जानते हैं. अब मैं शशि को तुम्हें सौंपता हूँ. बाकी की रस्म भी समय देखकर पूरा कर लेंगे.
गांव पहुंचने के दूसरे दिन बाद ही रामेश्वर ने अपनी पूरी जमीन का मुआयना किया. अगले दिन जिले पर जाकर ट्रैक्टर एजेंसी से ट्रैक्टर और उसके साथ कृषि संबंधित लगभग उपकरण भी ले आए. सभी चकों पर पानी की ट्यूबेल की बोरिंग हुई. और खेती करने के लिए कुछ मजदूर और कृषि में बी .एस.सी लोगों की नियुक्तियां भी कीं जिन्हें “कृषि रक्षक मित्र” का नाम दिया. नई उन्नत तकनीक और नई किस्मों और सूझबूझ की खेती से रामेश्वर ने देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम कमा लिया. जो गांव के जमीनदार लोग गांव छोड़कर शहर में मजदूरी या छोटी -मोटी नौकरी कर रहे थे , उन सभी की जमींने लीज पर ले ली. और उन सब खेतों में धरती माँ ने सोना उगलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते रामेश्वर ने गिर रही अपनी पुरानी बखरी को हवेली में बदल दिया. समस्त अत्याधुनिक सुविधाओं से घर सुसज्जित हो गया. दादी के ठाट फिर से लौट आए लेकिन वह पहले से बहुत बूढ़ी हो चुकीं थीं. रामेश्वर ने उन सभी गांव वालों को शहरों से वापस बुलाया और सभी को खेती के गुण सिखाने लगे. हर गांव में नि: शुल्क खेती की शिक्षा देते, पूरे गांव और जिले के साथ अब रामेश्वर एक सफल किसान के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे . आस -पास के गांवों की खेती रामेश्वर अपनी देख – रेख में कराने लगे. और अपनी ही जमीन पर एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाकर फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगा दी. आस पास के सभी खेतिहर किसान अपनी फसल उचित दाम में रामेश्वर के हाथों बेंच देते और रामेश्वर की कंपनी में वह सब प्रोसेस होकर गांव का माल शहर में बिकने को चला जाता. देखते ही देखते चंदनपुरा गांव ने तरक्की का आसमान छू लिया.
एक दिन शाम जब रामेश्वर अपने घर पर नहीं थे और शशि के पिता जी आए हुए थे, तो उसी समय डाकिया एक लिफाफा लेकर आया. शशि ने लिफाफा रिसीव किया . पिता के पूछने पर कि क्या है? बेटी शशि ने कहा कि पापा देखती हूँ भारत सरकार लिखा है इस पर. जब शशि ने उस लिफाफे को खोलकर पढना शुरू किया तो उसमें लिखा था
” प्रिय रामेश्वर जी! कृषि क्षेत्र में आपका योगदान सराहनीय है जिसके के लिए भारत सरकार ने आपको पुरस्कार के लिए चयनित किया है, और आपकी ग्राम्य योजना से प्रभावित होकर ग्राम्य मोबाइल विश्वविद्यालय की स्थापना का निश्चय किया है और आपको उसका कुलपति बनाया जाएगा जिसके माध्यम से हर ग्राम सभा के स्तर पर कृषि वैज्ञानिकों की नियुक्ति और कृषि रक्षक मित्रों की नियुक्ति की जाएगी जो किसानों की फसलों की नि: शुल्क निगरानी करते हुए हर किसान को सलाह देंगे कि अब इस समय आपकी फसल को क्या- क्या जरूरत है.? भारत की कृषि प्रधानता की ताकत से दुनिया को परिचित कराना है “
बगल में बैठी दादी के आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. बस उनका अंतिम शब्द यही था कि समधी जी जब मेरा सब कुछ खत्म हो गया था तब भी मैंने अपने मन में उम्मीद की आखिरी यही लौ प्रज्ज्वलित थी कि हमारा रामेश्वर ही हमारी सांझ का दीपक है. अब मैं अपने कुल दीपक के प्रकाश में चैन से मर सकती हूँ. समधी जी मैं तो बस इतना जानती हूँ कि जब लगे कि सब कुछ खत्म हो गया है तो वही सही समय होता है वापसी की शुरुआत करने का.
रचनाकार – एम. ए. हिंदी व पी जी हिंदी पत्रकारिकता डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से हैं.