कविता

पिता

डॉ सत्येन्द्र सत्यार्थी है निशा जिंदगी, जागरण हैं पिता, हर तरक्की के अंतःकरण हैं पिता। जिंदगी मुश्किलों ठोकरों से भरी, उनसे बचने का दृढ़ आवरण हैं पिता। कष्ट-ग़म के हलाहल…

 ख्वाहिशें

संजीव गोयल ख्वाहिशों का हमारी साँसों से है एक अटूट संबंध ख्वाहिशों के बिना हमारे जीवन में है सिर्फ क्रंदन, किसी को ख्वाहिश है नभ के शिखर को छूने की…

राजनीतिज्ञ

ठाकुर प्रसाद मिश्र रहे सदा शुभ तुम्हें तुम्हारी राजनीति य़ह हमें हमारी रंक नीति ही भाने दो। जहाँ रिक्त हो जाए तुम्हारा अक्षय तरकश, वह अनचाही स्थिति अब मत आने…

एकाकी

विशाखा गोयल मैंने ऊंची चढ़ाई देखी देखी फिसलती ढलाने भी, ठिठकना, थमना, गिरना देखा गिरकर देखीं उड़ानें भी, सफर देखा, देखे मुसाफिर और उनके ठिकाने भी, पीडा, रुदन, अफसोस देखा…