रमेश कुमार मिश्र (लेखक)

रजनी बाई औरों के साथ छज्जे पर खड़ी होकर ग्राहकों को अपने जिस्म का नूरे व्यापार करने को कभी शरीर के नाजुक अंगों को मटकाकर तो कभी अंतर्वस्त्रों को दिखाकर तो कभी , हाथों और नयनों से इशारा करके बुला रही थी… कभी-कभी आवाज देती हुई वह कह उठती अरे वो चिकने गाल सफेद शर्वाट ले आ जा तुझ पर तो पूरी जवानी का सारा को सारा रस लुटा दूं मैं…। आह! आ… जा…आ…जा… थक हार कर वह दिन की दोपहरी में अपने विस्तर पर पेट के बल जा गिरी और उसे कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला । उसे नींद आई ही थी कि उसके दरवाजे पर ठक-ठक की दस्तक के साथ तेज आवाज आई, दरवाजा खोल हरामी की औलाद । रजनी की तुरंत लगी नींद टूट गई और वह विस्तर से उठकर दरवाजे की तरफ भागी । दरवाजा खुलते ही चंदो बाई ने दहाड़ते हुए कहा सुन ले रजनी यहाँ तेरे बाप की खेती नहीं है जो तू बिना कमाए खाने को पाएगी। हरामखोर जब दिन की दोपहरी में सारी बाइयां अपने-अपने विस्तर पर ग्राहकों मजा परोस रही हैं तो तू यहाँ आराम फरमा रही है । तू जानती है इसका नाम कोठा है और यहाँ जो बिकता है उसका नाम जिस्म है । अब तू चौबीस घंटे में जितनी बार अपने इस जिस्म का सौदा करेगी तेरा कद उतना ही बढ़ेगा । कान खोलकर सुन ले रजनी ग्राहक बुलाने की कला अच्छे से सीख ले और हां यहां काम चोरी तो बिल्कुल भी नहीं चलेगी । तू जानती है न मेरा नाम चंदो बाई है ,कोठे की दुनिया की बेताज बाई…और सुन तू इस समय मेरे कोठे की सबसे खूबसूरत बाई है । तेरा बदन भी खूब गदराया हुआ है । तुझसे तो मुझे सबसे ज्यादा कमाई चाहिए । मैं कोठे की मालकिन हूं और मुझे जो चाहिए उसका नाम है पैसा। जितना कमा कर दोगी उसी हिसाब से तुम्हें भोजन भी मिलेगा…जिस दिन न कमाओगी उस दिन रोटी नहीं मिलेगी । रजनी ने कहा सुनो चंदो बाई जिस्म नोचवाती हूँ मैं और कीमत लेकर रखती हो तुम, तो क्या मेरे जिस्म के बदले मुझे भर पेट रोटी भी नहीं मिलेगी… यह कहाँ का न्याय है। और हाँ तू मुझे यहाँ धोखे से लाई है । मैं एक सीधी सादी रजनी थी जिसने व्यभिचार की दुनिया का ब भी न सुना था जिसे तूने बाई बना दिया। मैं भी एक इज्जत दार बाप की बेटी थी। धोखे से तेरे ठुल्लों ने मेरा अपहरण किया और फिर मुझे रात-रात भर अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर तेरे जैसी चुड़ैल के हाथ लाकर मुझे बेंच दिया । सुन चंदो बाई वैसे तूने जितने में मुझे खरीदा था उसका कई गुना तो मेरे जिस्म का सौदा कराकर कमा चुकी है, अब मुझे यहाँ से जाने क्यों नहीं देती । चंदो बाई ने दांत पीसते हुए कहा सीमा में रह ले रजनी न तो तेरे इस जवानी को कटवाकर चील-कौओं को खिला दूंगी । तुझे समझ क्यों नहीं आता हमने व्यापार किया है और व्यापार में मुनाफा ही मालिक का उद्देश्य होता है । रजनी भी अकड़ती हुई बोली अरे कल कटवाकर फेंकेंगी तो आज ही कटवाकर फेंक दे न इस जिस्म के टुकड़े को चील कौवे खाएं तो खाएं वैसे भी इसमें बचा ही क्या है ,रोज तो यह नोचा जाता है, कभी ऊपर से तो कभी नीचे से । तू भी तो औरत है न बता तेरे ऊपर दिन में दस-दस हवसी मर्द चढ़ें तो तेरे में दर्द होगा कि नहीं यहाँ रोज 15-20 चढ़ते हैं, इंसान तो मैं भी हूँ लेकिन तेरे और मेरे में एक फर्क है कि तू स्वच्छंद है और मैं मजबूर…
चंदो बाई ने कहा इसी दर्द के लिए तो तुम सबको दवा और मरहम भी उपलब्ध कराती हूँ क्या उसमें पैसे नहीं लगते हैं ? और हाँ तेरी छाती और योनि जो इतने मर्दो के तुझ पर चढ़ने के बाद भी अभी कठोर और आकर्षक बनी हुई है उसके लिए भी तो इतनी महंगी-महंगी विदेशी क्रीम मंगाकर देती हूँ… इसी बीच केतकी बाई ने चंदो बाई के पास आकर कहा कि चार- पांच ग्राहक बरामदे में इंतजार कर रहे हैं । रजनी को छोड़कर अभी और सबके काम चल रहे हैं। रजनी तैयार हो जा इसमें से तो तेरे चार पुराने ग्राहक हैं जो तेरे ही पास आने वाले हैं… और उन सभी को तुम्हें ही संतुष्ट करना है… देख ले कोई नाटक नहीं चलेगा… रजनी माथा पकड़कर नीचे फर्श पर बैठ गयी… चंदो बाई वहाँ से पैर पटकती हुई यह कहती हुई चली गयी कि सुन छोकरी आज तेरी सजा ए है कि तू देर रात तक जब तक ग्राहक आएंगे कम से कम 12 को संतुष्ट करेगी… न तो दो दिन खाने को कुछ न मिलेगा… रजनी दोनों घुटनों के बीच अपना माथा टिकाए रोए जा रही थी और उसके आंसुओं की धार से फर्श भी गीला हो रहा था…
ग्राहक ने दरवाजा खटकाया तो रजनी जल्दी से उठकर कमरे के बाथरूम में मुहं धोने चली गई । मुंह पर पानी के छींटे मारकर वह इत्र का स्प्रे लेने के बाद अपने बालों में कंघी करती हुई विस्तर पर आ गयी, जहाँ ग्राहक उसके विस्तर पर बैठा उसका इंतजार कर रहा था। रजनी ने कहा कहिए शाम बाबू कैसी कट रही जिंदगी।.. .शाम ने रजनी की साड़ी का पल्लू पकड़ उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा बिना तुम्हारे साथ सोए सब कुछ बेकार लगता है रजनी… तुम हो तो मैं हूँ… रजनी ने कहा अच्छा मैं आपको इतनी अच्छी लगती हूँ… शाम ने कहा हां रजनी शाम का वजूद रजनी की गोद में पलता है… अब तो तुम्हारे बिना सब कुछ खोया-खोया सा लगता है… रजनी ने कहा अच्छा ऐसा है क्या… मुझमें ऐसा क्या अच्छा लगता है आपको शाम बाबू… शाम ने कहा रजनी ए कहो कि क्या-क्या अच्छा लगता है अगर कहूं तो तुम्हारी आंखों में कशिश है, गालों और बदन में नूर है, तुम्हारे स्तनों में नरमी है और तुम्हारे सेक्स में जन्नत है.. रजनी ने शाम के बालों में अपने हाथों की अंगुली फिराते हुए कहा कि शाम बाबू जब मैं आपको इतनी अच्छी लगती हूँ तो आप मुझे इस नरक से निकाल कर मुझसे शादी क्यों नहीं कर लेते …। शाम ने रजनी को अपने से दूर झटकते हुए कहा कि क्या बक रही हो । शादी और तुमसे मेरा दिमाग खराब हो गया है ? तुम पर न जाने कितने मर्द चढ़ उतर चुके हैं और ऐसी चालू चीज को हम भला अपनी बी.बी कैसे बना लेंगे। तुमने सोचा भी कैसे… रजनी पैर की जूती विस्तर के कमरे तक नहीं जाती है ध्यान रखना. तुम मेरे लिए सिर्फ सेक्स की भूख पूरा करने का कैप्सूल भर हो। शादी तो मैं किसी इज्जतदार घराने में ही करूँगा और कोई चरित्रवान बी.बी लाऊंगा…। रजनी ठहाके मारकर हंसने लगी । उसकी हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसने कहा शाम बाबू खुद तो कोठों पर रंडीबाजी करते फिरते हो और बी.बी चाहिए चरित्रवान…। वाह क्या बात है…। कंडोम लाए हो कि दूं अपना काम निपटाओ और दफा हो जाओ, फिर कभी किसी वेश्या से मत कहना कि तुम उसके ख्यालों में पपीते तोड़ते रहते हो…। चरित्र जब गिरता है तो इंसान सबसे बड़ा झूठा हो जाता है शाम बाबू । कितनों को अपने ऊपर चढ़ा और उतार चुकी हूँ सब समझती हूँ…। हम किस्मत के मारे हैं न तो तुम जैसों से तो हम अपने बगल के बाल भी न साफ करवाते…। तीन मिनट भी टिकता नहीं है चला है चरित्रवान बी बी ढूंढने…।
शाम विस्तर से उठकर जाते हुए बोला तू तो बहुत नंगी औरत है रे .. मुझे तेरे साथ अब कभी नहीं सोना है …। रजनी ने कहा शाम बाबू…एक औरत जब एक भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो वह बहन, जब मंडप और डोली में होती है तो वह दूल्हन और जब पति के साथ के सात फेरे लेती है तो पत्नी, जब बच्चे को जन्म देती है तब माँ , जब रण में होती है तो दुर्गा और जब कोठे पर होती है तो वेश्या और तू तो जानता है कि तेरे जैसे जब अनेकों मर्द हम जैसी लडकियों के सामने नंगा होते हैं तब हमें नाम मिलता है वेश्या, रंडी, तो तू तयं कर ले कि कौन नंगा है कौन नहीं…। शाम दरवाजे पर लात मारते हुए वहाँ से बाहर निकल गया… । कोठे पर तो पैसा पहले ही जमा हो जाता है तो वापसी का कोई चांस ही नहीं होता है , कारण कि लज्जा क़ो बेंचकर एक मर्द कोठे पर चढता है और कोशिश करता है कि कोठे से उतरते समय उसको कोई देख न ले…। कई बार बिना सोचे भावना के आवेग में आ जाने की गति बड़ी ही भयावह होती है…। रजनी फूट-फूट कर रोने लगी… तभी दूसरे ग्राहक ने उसके कमरे में प्रवेश किया… फिर रजनी झट – पट उठकर बाथरूम में सावर लेने चली गई और थोड़ी देर बाद ही वदन में इत्र लगाकर कंघे से बालों को संवारती हुई उसी विस्तर पर आ गयी जहाँ से अभी-अभी शाम गया था… । विस्तर पर से पैर लटकाकर बैठे मेहता के पैर में पैर से मारती हुई रजनी ने कहा क्यों रे मेहता आज क्या करने का इरादा है…। तू तो बड़ा हैंडसम है रे तुझे तो बाहर भी कोई अच्छी लड़की मिल जाएगी तू वहीं क्यों नहीं मुंह मार लिया करता है … क्यों आए दिन मेरा जिस्म नोचने चला आता है…। मेहता ने रजनी को बाहों में भरते हुए मुस्कुरा कर कहा तेरी यही अदाएं तो मुझे तेरे पास बलात् खींच लाती हैं । रजनी जब तू अपने फूल जैसे पैरों से मेरे पैरों में मारती है न तो दिल में हलचल मच जाती है…। तेरी जवानी मेरी कमजोरी बन गयी है और दिल हार जाता हूँ दिमाग में तेरा ख्याल आते ही…। रजनी बस तुझे ही यह अधिकार है कि तू मेरे पैर में पैर मार देती है बाहर मुझ पर कोई एक छोटा कंकड भी मार दे तो गोली चल जाती है…। रजनी बाहर अपनी धाक और इज्जत दोनों ही है…कोई साला अपनी इज्जत पर कीचड़ नहीं उछाल सकता है…रजनी ने हंसकर कहा अच्छा मेहता साहब… तो जब आप यहां कोठे पर आते हो तो बाहर समाज में इज्जत की नीलामी नहीं होती है…? मेहता ने कहा नहीं सबकी आंखों से बच- बचाकर आता हूँ तुम्हारे पास… रजनी ने मेहता की शर्ट की बटन खोलते हुए कहा… मेहता साहब यही तो चक्कर है लोग दूसरों की आंखों से बचने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि उनकी आंखें उन्हे सबसे पहले देख रही होती हैं…?
मेहता साहब मैं आपको अच्छी लगती हूँ…? आप तो जानते हैं हर बार सेक्सुअली आप ही थकते हैं । मैं ता उम्र आपको यह सुख भी बराबर देती रहूंगी और जो जिम्मेदारी मुझे आप देंगे मैं वह भी निभाऊंगी… मेरे से शादी करोगे… रजना ने कहा ? मेहता साहब विस्तर से उठकर बैठ गए और बोले अरे क्या कह रही है तू, कहाँ तू कहाँ मैं । तू तो एक वेश्या है और मैं खानदानी… लोग क्या कहेंगे… देख रजनी तेरे से अपना संबंध यहीं इस विस्तर तक और जब तेरा सब ढ़ीला हो जाएगा तब तेरी जगह कोई और नयी चलेगी… मेरी बी.बी तो वह बनेगी जिसने पलक उठाकर कभी किसी पर पुरुष को देखा तक नहीं हो…रजनी खिलखिलाकर हंस उठी और बोली बाबू आप कोठे पर हो और वदन से नंगी वेश्या के सामने नंगे अब ए इज्जत का लबादा कब तक और कहाँ तक चलेगा… सच सदैव नंगा होता है मेहता साहब और वह चुभता भी है जैसे इस समय तुम्हें चुभ रहा है… मेहता ने गहरी सांस ली और गला साफ करते हुए कहा… रजनी बाई जिसे तुम कोठा कह कही हो मेरी नजर में वह एक तरह का बाजार है, और बाजार से अपनी-अपनी मन पसंद का सामान खरीदने का हक सभी को है । रजनी तुम क्या समझोगी पत्नी बंधन है तो वेश्या मुक्ति का द्वार इसलिए मैं अपनी आखिरी सांस तक इन दोनों में अंतर करके चलूंगा… रजनी ने कहा मेहता साहब ए दुनिया बहुरंगी है यहाँ अपनी हवस और जरूरत के अनुसार व्याख्याएँ कर दी जाती हैं… मैं तो एक मजबूर लड़की हूँ जिसके वदन से आप जैसे लोग अपनी हवस भी पूरी करते हैं और उसे वेश्या का नाम भी देते हैं… वेश्या कोई शौक से नहीं बनती… उसे हमारे ही समाज में गढ़ा जाता है… आज भी तुम दो पल न चल सके… अब जाओ कहीं पर चरित्रवान लड़की बी.बी वनाने के लिए ढूंढ लेना… बस याद रहे कि वह लड़की भी कहीं किसी वजह से मजबूर न हो….
रजनी विस्तर से उठकर बाथरूम की तरफ जाती हुई बोली , मेहता साहब हवस वालों के पास दिल नहीं होता और जिसके पास दिल होता है वह हवसी नहीं होता , अगली बार तैयारी करके आना… अभी आज और न जाने आगे की कब तक की जिंदगी तक तेरे जैसे न जाने कितनों के……
लेखक—दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में परास्नातक व हिंदी पत्रकारिता में पी.जी डिप्लोमा हैं ।