अरुणाकर पाण्डेय
आप सपरिवार रावण-दहन देखने नहीं जा रहे ?”
“जी अभी घर पहुँच कर वहाँ से सीधे जाऊंगा”
“अच्छी बात है, क्या आप वहाँ पर खोई एक चीज का पता लगा सकेंगे ?”
“हाँ, क्यों नहीं, बताईए !!”
“आपको विजय-रथ का पता लगाना है, वहीं कहीं पड़ा होगा”
“यह क्या है ?”
“वही जिस पर चढ़ कर राम ने रावण का अंत किया था,उसे जनता के हृदय में मिलना चाहिए।हर वर्ष राम उसे बड़े संघर्ष और जतन से प्राप्त करते हैं, हर वर्ष !! लेकिन जनता उस पर ध्यान भी नहीं देती और वह गायब हो जाता है।उसकी सबसे बड़ी कीमत हर वर्ष रावण और राम को ही चुकानी पड़ती है …..इसीलिए !
तुलसीदासजी ने ‘रामचरितमानस’ में उस रथ के बारे में कहा था
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा ।
देखि बिभीषन भएउ अधीरा ।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा ।
बंदि चरन कह सहित सनेहा ।।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना ।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना ।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना ।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना ।।
सौरभ धीरज तेहि रथ चाका ।
सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे ।
छमा कृपा समता रजु जोरे ।।
ईस भजनु सारथी सुजाना ।
बिरती वर्म संतोष कृपाना ।।
दान परसु बुद्धि सक्ति प्रचंडा ।
बर बिग्यान कठिन कोदंडा ।।
अमल अचल मन त्रोन समाना ।
सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
कवच अभेद विप्र गुरू पूजा ।
एहि सम बिजय उपाय न दूजा ।।
सखा धर्ममय अस रथ जाके ।
जीतन कहॅं न कतहुॅं रिपु ताके ।।
महा अजय संसार रिपु
जीति सकै सो बीर ।
जा के अस रथ होइ दृढ़
सुनहु सखा मति धीर ।।”
“मगर!!……आप हैं कौन ?”
“मैं……….मंदोदरी”
विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ !