सामुद्रिक विद्या या अंग विद्या

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रमेश कुमार मिश्र

सामुद्रिक विद्या का भारतीय प्राचीन विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ स्थान है।विद्वानों का मानना है कि इस विद्या को को सवसे पहले समुद्र ऋषि ने ही संकलित किया था जिसके कारण इसे सामुद्रिक शास्त्र नाम से अभिहित किया जाता है।सामुद्रिक विद्या या अंग विद्या का की गणना ज्योतिष शास्त्र में संहिता स्कंध मे अंतर्भूत की गयी है। सामुद्रिक विद्या को पुराणों के साथ- साथ संपूर्ण संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है ।ध्यातब्य है कि इसके अंतर्गत मानव शरीर की आकृति और विभिन्न अंगों के आकार-प्रकार  की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव भविष्य और व्यक्तित्व के स्वभाव का अध्ययन किया जाता है।

सामुद्रिक विद्या के मुख्य विषय –

  1. शरीर की आकृति और इसके अंगों का अध्ययन
  2. हाथ और अन्य अंगों के आकार और श्थिति का विश्लेषण
  3. ब्यक्ति के स्वभाव व्यक्तित्व और भविष्य का अध्ययन
  4. शरीर पर बन रहे तिलादि लक्ष्णों के आधार पर शुभाशुभ अध्ययन
  5. रोगों के कारण और लक्ष्णों का अध्ययन

    सामुद्रिक विद्या के महत्व –

1-अंग विद्या के माध्यम से व्यक्ति के स्वभाव और व्यक्तित्व को समझने में मदद करता है ।

2-भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है ।

3-वयक्ति के जीवन व उद्देश्यों को समझने में मदद करता है ।

सामुद्रिक विद्या के प्रमुख ग्रंथ –

  1. सामुद्रिक लक्ष्णम्
  2. सामुद्रिक रत्नम्
  3. सामुद्रिक सारम्

सामुद्रिक विद्या के कुछ मुख्य सिद्धांत —

  1. त्रिकोणम् (चेहरे के तीन भागों का अध्ययन )
  2. हस्त लक्षणम् (हाथ के आका और रेखाओं का अध्ययन )
  3. पाद लक्ष्णम् (पैर के आकार ऐर रेखाओं का अध्ययन)

 ध्यातव्य है कि मनुष्य शरीर के सभी अंग अपना अलग –अलग स्वरूप रखते हैं । यह तो सर्वविदित है कि प्रकृति की रचना में किसी का एक अंग दूसरे किसी व्यक्ति के अंग से समानता नहीं रखता है । अंग शुभाशुभ के परिचायक होते हैं ।अंग विद्या का विज्ञ व्यक्ति अंगों के स्वरूप के आधार ही समझ सकता है ।

भारतीय सामुद्रिक विद्या के ग्रंथों में नाक, हाथ ,आंख , कान गर्दन भुजा कमर , जंघा पैर आदि की आकृति तथा तुरग वृषब शशक मृग आदि से स्त्री वर्ग में पद्मिनी , हस्तिनी शंखिनी आदि लक्षणों से एवं तिल , मस्सा , अंग प्रत्यंग की आकृति से सामुद्रिक लक्षणों का विचार किया गया है ।भरतीय मान्यतानुसार शंख ,फालकी अश्व , पताका मत्स्य स्वसितिक चक्र य़व आदि निशानों के आधआर पर विचार किया जाता है ।

संस्कृत साहित्य में अंगविद्या का एक उदाहरण देखते हैं । जब रावण की लंका के अशोक वाटिका में थीं और हनुमान जी राम जी के दूत वनकर उनकी खोज करते हुए वहां पहुंचते हैमं और माता सीता से कहते हैं कि माता मैं श्रीराम प्रभु का दूत हूं तो माता सीता ने हनुमान जी से कहा कि यदि तुम श्रीराम जी के दूत हो तो श्रीराम ऐर उनके भाई लक्ष्मण जी के लक्षण बताओ , य़दि तिम सही बता ले जाते हो तो मैं मान तूंगीं कि तुम राम जी के दूत हो । इस पर हनुमानम जी ने राम और उनके अनुज लक्ष्मण के लक्ष्ण कुछ इस प्रकार कहे —

विपुलांसो महाबहुः कम्बुग्रीवः शुभाननः।

गूढजत्रुः सुताम्राक्षो रायो नाम जनैः श्रुतः।।

दुंदुभिस्वन निर्घोष स्निग्धवर्णः प्रतापवान।

समश्च सुविभताड्गों वर्णश्यामं समाश्रितः ।।

………….आदि, वील्मीकि रामाय़ण

मनुष्य शरीर के अंगों पर तिल के होने का शुभाशुभा फल—

अंग विद्या के आधार पर आज हम आपको  सबसे पहले मनुष्य शरीर पर विद्यमान तिल के बारे में बताएंगे । कशरीर के किस भाग का तिल मनुष्य के जीवन पर अपना कौन सा प्रभाव डालता है…

अंड्गुष्ठेडगुष्ठपार्वे च बहुगंता नरस्तिले ।

द्वेषी स्यातर्जनीपार्श्वे धनी चाडत्र न संशयः।।

मध्यमापार्सवभागे तु जनः शांतिप्रियः सुखी ।

तिलस्वनासिकादेशे रमाविद्यानिधिभवेत् ।

Samudrik Vidya or Anga Vidya
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यदि किसी व्यक्ति के हाथ के अंगूठे में तिल हो या अंगूठे के पार्श्वभाग में तिल हो तो समुद्रकार के मतानुसार वह व्यक्ति अपने जीवन काल में बहुत ही यात्रा करने वाला होता है । और जिस व्यक्ति के हाथ की तर्जनी अंगुली में तिल हो तो ऐसा व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का होता है लेकिन वह धनिक भी होता है ।कही गयी ए दोनों बातें सही होती ही हैं, इसमें  किसी भी प्रकार का संशय नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही यदि मध्यमा अंगुली पर तिल हो या इसके पृष्ठ भाग में तिल हो तो ऐसा व्यक्ति शांति प्रिय स्वभाव का होतने के साथ सुखी जीवन व्तीत करता है। और यदि किसी व्यक्ति के हाथ की अनामिका अंगुली में तिल हो तो ऐसा व्यक्ति रमा अर्थात लक्ष्मी अर्थात धन धान्य से समृद्ध होता है और ज्ञानवान  भी होता है।

तथा कनिष्ठिकापार्श् सुतवित्तसमन्वितः ।

तिलं करतले य़स्य सततन्च धनागमः ।।

लालाटिको ललाटे च नेत्रे जारः प्रचक्षते ।

श्रवणे सर्वसिद्धिः स्यान्नासा दुष्टःप्रकीर्तितः।।

सामुद्रिक विद्या में बताया गया है कि किसी व्यक्ति के हाथ की कनिष्ठा अंगुली में तिल हो या उसके पृष्ठ भाग मे तिल हो तो ऐसा मनुष्य पुत्र और धन दोनों से युक्त होता है ।अर्थात ऐसे व्यक्ति की ऐलाद भी होती है और वह धन संपदा से युक्त भी होता है । आगे कहा गया है कि जिस व्यक्ति के करतल अर्थात हथेली सें तिल होता है ऐसे मनुष्य के धन का आगम अर्थात स्रोत सदैव बना रहता है । यदि किसी व्यक्ति के ललाट पर चिन्ह हो तो ऐसा व्यक्ति भाग्याधारित जवन व्यतीत करता है ।और यदि किसी व्यक्ति के नेत्र अर्थात आंख में तिल होता है तो ऐसा व्यक्ति पर स्त्री अर्थात परायी स्त्री के साथ संबंध रखने वाला होता है । यदि किसी व्यक्ति के कान पर या कान में तिल होता है तो ऐसा व्यक्ति समस्त सिद्धियों का स्वामी होता है । यदि किसी के नाक में तिल हो तो ऐसा व्यकिति दुष्ट प्रकृति वाला होता है ।

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कपोले सुष्मायुक्तः लोभी स्यादधरे तिलः ।

कँटे भक्तो मनुष्य़ः स्याद् हृदि सौभाग्यकारणम् ।।

बाहौ धनं विजानीयाल्लिगें तु प्रमदारतः ।

जङ्घयो रसिको मर्त्यः पादे नृपति वाहनम् ।।।।

समुद्रशास्त्र के अनुसार यदि कपोल अर्थात गाल में तिल हो तो ऐसा व्यक्ति सुषमा अर्थात सौंदर्यवान होता है । यदि कासी व्.क्ति के होष्ठ में तिल हो तो वह लोभी अर्थात लालची होता है ।यदि किसी व्यक्ति के कंठ अर्थात गले में तिल हो तो ऐसा मनुष्य बक्त स्वभाव का होता है । और यदि किसी व्यक्ति के हृदय स्थान पर तिल हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत सौभाग्य का कारक  होता है अर्थात वह व्यक्ति का सौभाग्यशाली होता है । सामुद्रिकविद्या में बताया गया है कि जिस मनुष्य के बाहु अर्थात बुजा मे तिल होता है वह मनुष्य धन-धान्य से संपन्न होता है । और जिस व्यक्ति के  लिंग में तिल होता है ऐसा व्यक्ति पर स्त्री गामी होता है अर्थात ऐसे व्यक्ति का विवाहेतर संबंध भी होता है । बताया गया है कि जिस व्यक्ति की जांघ मे तिल होता है ऐसा व्यक्त्ति रसिक अर्थात स्त्रियों में अधिक रुचि रखने वाला होता है ।और यदि किसी के पैर में तिल हो तो ऐसा व्यक्ति राजा का वाहन अर्थात राजा के वाहन का चालक हो सकता है या फिर उसका सेवक भी हो सकता है ।

पृष्ठे कटौ नितम्बे च गुह्ये व्यर्थ तिलो भवेत्।

वामाङ्गे च शुभः स्त्रीणां प्रायः पुंसांच दक्षिणे ।

सामुद्रिक विद्या के अनुसार मनुष्य के पीठ भाग, कमर भाग ,नितंब और गप्त इंद्रियों पर दयदि तिल होता है तो उसका फलाफल का विचार नहीं किया जाता है । ध्यातव्य है कि उपरोक्त वर्णन फल स्त्रियों के वाम भाग अर्थात वायदि स्त्री के बायें भाग के तिल और पुरुष के दाएं भाग के तिल पर ही शुभाशुभ का विचार किया जाना चाहिए ।

लेखक –दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में पी .जी व हिंदी पत्रकारिता में पी. जी डिप्लोमा हैं

उपर्युक्त लेख मे श्लोक संदर्भ सामुद्रिक रहस्य पुस्तक है ।जिसके प्रति टीम कहानी तक कृतज्ञता ज्ञापित करती है ।                        

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