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रमेश कुमार मिश्र

Ramesh Mishra

मैं कलम हूँ मेरा वजूद मेरी स्याही है, 

मैं थिरकती हूँ कवि तर्जनी पर अविराम.

हो हृदय में पीर भारी ,  या कि उठती हों हिलोरें

मैं सदा एक रंग रहकर, लिखती हूँ भाव सारे

न मुझे नृपदंड का डर, सोहता न सोने का कर, 

नम्रता की कली हूँ मैं, क्रूरता की ज्वालामुखी मैं

लिखती हूँ सब भाग्य सारा, जानता संसार है

आगत विगत की स्वामिनी हूँ, आज की भी मालिनी हूँ, 

कवि मेरा अभिमान प्यारा, मैं उसकी ही अंतर्व्यथा हूँ, 

मैं कलम हूँ, मेरा वजूद मेरी स्याही है.

एम. ए. हिंदी दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली व हिन्दी पत्रकारिता पी.जी.डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली

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