रमेश कुमार मिश्र
घनघोर घटाओं का गर्जन, या कि समुद्र की प्रचंड लहर |
कब रोक मनुज को पाया है विघ्नों का नंगा क्रोध प्रबल ?
है प्रकृति अगर बहुबल प्रकीर्ति तो दिव्य अमर मानवता भी |
है विगत गवाह प्रलय का भी मिट गये लोग मिटी सभ्यता भी ||
पर क्या जीवन मिटा कभी ?
सच्चे नाविक की पतवारें रुकतीं न कभी तूफानों में |
तू धैर्य पाल तू धैर्य पाल यह धूम्र कालिमा छट जाएगी
होगा प्रकाश नव जीवन में ?
रचनाकार – एम. ए. हिंदी व पी.जी . डिप्लोमा हिंदी पत्रकारिता में दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली