कहानी : वृद्धाश्रम
रमेश कुमार मिश्र
वसंत कुंज दिल्ली के इलाके में शर्मा जी व उनकी पत्नी अपनी ढाई मंजिला कोठी में रहते थे. ओर बेटा शेखर अपनी पत्नी प्रिया के साथ सुबह दिल्ली एयरपोर्ट पर आएगा, वहाँ से वह घर आएगा. सुबह होने से पहले ही शर्मा जी व उनकी पत्नी जागकर घर में इधर- उधर पड़े सामानों को सही जगह पर रखना शुरू कर दिए. शर्मा जी की पत्नी शाम से सुबह तक शर्मा जी से कई बार कह चुकीं थी कि देखो जी मेरे बेटे को तो खीर पसंद है, अपनी बहू की पसंद का तुम देख लेना.
शर्मा जी पत्नी के साथ लगकर घर के सारे सामानों का जायजा ले रहे थे , कि नीचे से ऊपर दौड़कर सीढ़ियां चढ़ता हुआ नौकर रामू चिल्लाकर बोला बाबू जी शेखर भैया आ गए. चांदनी ने आंचल में अपना मुंह ढ़क लिया मेरा बेटा आ गया. हे ईश्वर तेरा लाख – लाख शुक्र है कब का गया आज बेटा घर आया है. कितने सालों बाद मैं उससे मिलूंगी?
घर में खुशियों का माहौल था. एक दिन शाम को शर्मा जी भोजन के टेबल पर सपरिवार भोजन कर रहे थे कि शेखर ने कहा मम्मी- पापा आप दोनों उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं और ऐसे में मैं आप दोनों को यहाँ अकेला नहीं छोड़ सकता हूँ. मां चांदनी ने छूटते ही कहा बेटा शेखर सुना है अमेरिका बहुत बड़ा है ,सुख सुविधाओं वाला देश है हमें फक्र है तुम्हारा वहाँ बंगला भी है. तुम हम लोगों को वहाँ ले चलोगे तो तुम्हारा खर्च बहुत बढ़ जाएगा.
शर्मा जी पत्नी के चेहरे की खुशी देख मुस्कुराए और फिर शेखर की तरफ देखे और बोले ठीक ही तो कह रही हैं तुम्हारी मां.
शेखर ने कहा पापा मेरा मतलब वह नहीं है मैं तो कह रहा था कि…..
प्रिया बीच में ही भोजन छोड़ते हुए बोली मुझे ज्यादा भूख नहीं है और उठकर अपने कमरे में चली गयी. शेखर की मां चांदनी ने शेखर से कहा बेटा देखो अगर बहू की तवियत ठीक न हो तो बगल में डाक्टर मैडम रहती हैं उन्हें मैं बुला लाती हूँ देख लेंगी बहू को.
सुबह के घर से निकले शेखर व प्रिया दोपहर के समय घर पर वापस आते ही बोले पापा मुझे आपसे कुछ बात करनी है वह भी अभी तुरंत.
शर्मा जी ने कहा बोलो बेटा शेखर ! सब ठीक तो है तुम और बहू ठीक तो हो न. हां पापा सब ठीक हैं..
पापा मैं कह रहा था कि….
हां बोलो न बेटा… बोलो.. बोलो…
शेखर ने कहा पापा ए घर मैंने प्रापर्टी डीलर के माध्यम से किराये पर उठा दिया है और अब आप सब…..
शर्मा जी शेखर के करीब पहुंचकर बोले देखो बेटा ऐसा नहीं होगा इस बार हम और तुम्हारी मां तुम्हारे और बहू के साथ अमेरिका नहीं जा रहे हैं. वहाँ जाकर हम दोनों तुम सब पर भार नहीं बनना चाहते हैं,और फिर हम दोनों बाद में आ जाएंगे अभी तुम सब अपने जाने की तैयारी जल्दी – जल्दी करो, रात कितने बजे की तुम्हारी फ्लाइट है?
शेखर ने थोड़ा ऊंचे स्वर में कहा पापा मैं आप सबको अमेरिका नहीं ले जा रहा हूँ. मैं शहर में आप दोनों के लिए वृद्धाश्रम में एक आलीशान कमरा बुक करके आ रहा हूँ . वहाँ के लोग बहुत केयरिंग हैं और आप शायद नहीं जानते हैं कि दिल्ली के सबसे बड़े वृद्धाश्रमों में से एक है वह जिसका नाम सेवाश्रम है,जानते हैं न आप . वहाँ रहेंगे आप सब तो आप सबका एकाकीपन भी वहाँ दूर हो जाएगा .वहाँ आप सबके हम उम्र भी बहुत रहते हैं…. और फिर हमारे अमेरिका में भी तो बुजुर्ग माता- पिता के लिए..
शर्मा जी सोफे पर धम्म से बैठ चुके थे. उनकी पत्नी चांदनी बगल में खड़ी- खड़ी कह रही थीं कि बेटा बुढ़ापे में जीवन के लिए हम उम्र मित्रों की नहीं अपितु अपनों की जरूरत होती है. बेटा तुम तो बहुत बड़े हो गए. बड़े देश में बडा़ काम व मकान है तुम्हारा. हमें हमारी दशा पर छोड़ दो हमारे लोग यहाँ रहते हैं. रिश्ते हैं नाते हैं, पड़ोसी हैं.हमारी तीस वर्षों की यादें हैं इस मकान में हम सुखी व सुरक्षित रह लेंगे. तुम अपने अमेरिका वापस चले जाओ….
प्रिया ने चीखते हुए कहा वापस चले जाओ मतलब.. देखो माँ हम यहाँ रहने तो बिल्कुल भी नहीं आए हैं आप अपने दिमाग में फितूर न पालें. मैंने आप सबका सामान पैक कर दिया है. इसी मकान के एक कमरे में आप सबका सामान बंद रहेगा. और शेष पूरा का पूरा मकान किराए पर. प्रापर्टी डीलर से पूरे वर्ष का एडवांस लेकर सेवाश्रम में जमा करा दिया है. और फिर पापा की पेंशन भी तो आती है वहाँ कौन सा अब इस उम्र में आप सबको फैशन करना है. सुबह की चाय दो ब्रेड और शाम की चाय बाकी दो वक्त की रोटी…और….
शर्मा जी ने कहा बेटा यही दो वक्त की रोटी ही तो सब झगड़े की जड़ है…
शेखर ने कहा पापा चलिए, मेरे पास अधिक समय नहीं है. रात दस बजे हमारी फ्लाइट है..
आप सब यहाँ अकेले रहेंगे तो हम दोनों वहाँ चैन से काम भी नहीं कर पाएंगे..
शर्मा जी ने कहा शेखर जिद मत करो…
तुम दोनों चले जाओ..
ठीक है फिर रहिए यहीं जैसे रहना है.. शेखर ने पैर पटकते हुए कहा…
रहिए मतलब ए मिस्टर शेखर यह भी याद रहे प्रापर्टी डीलर से एडवांस लिया जा चुका है और वहाँ स्वर्ग जैसे बंगले में इन सबके लिए जमा भी किया जा चुका है..
शर्मा जी ने कहा बेटा तुम सब चले जाओ हमारी फिक्र छोड़ो, फिक्र तो रिश्तों की होती है और जब रिश्ते ही….
शर्मा जी मना कर रहे थे कि शेखर ने उनका हाथ पकड़ कर खींचना शुरू किया पापा चलिए न. शर्मा जी पड़ोसियों के सामने सोफे को कसकर पकड़े हुए थे. लेकिन शर्मा जी और उनका बूढ़ा सोफा जवान शेखर के हाथों के साथ धीरे -धीरे गेट तरफ घिसटने लगा था. चलिए न चलिए… चलना ही होगा.. मैंने मकान किराए पर दे दिया है की आवाज ने अगल- बगल के और पड़ोसियों को इक्ट्ठा कर दिया था.
पड़ोसी पांडे जी ने कहा अच्छी तालीम केवल इंजीनियर या वैज्ञानिक होना भर नहीं है.उसके लिए तो…
सोफा गेट की तरफ घिट- घिट, घें – घें की आवाज करता गेट में आकर फंस गया.उस समय शर्मा जी का साथ उनका पुराना सोफा ही दे रहा था.
दरवाजे के सहारे अंदर खड़ी चांदनी जी अब जमीन पर गिर चुकी थीं सब उनके पास दौड़े तो उनका शरीर ठंडा पड़ चुका था. जिसका आभार था सब पर वह भार न बना पल भर भी अपनों पर. सब तरफ सन्नाटा था उस बीच बस एक आवाज आयी कि शेखर तेरी मां की वजह से आज हमारी फ्लाइट का टिकट भी गया….
दूसरी आवाज शेखर के गाल पर शर्मा जी के हाथों जोर के थप्पड़ की थी… और उनका अंतिम स्वर था बद्तमीज अपना देश और अपने रिश्ते अपने ही होते हैं… किराए का देश व किराए के रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता…
रमेश कुमार मिश्र की कलम से
फोटो साभार ए आई और पिक्सेल