रमेश कुमार मिश्र
जिसे देखो आज वही अखबार है,
पन्ना तो है भक्त कलम लाचार है,
कंचन की चाह में खोए खबरकार हैं,
दीन उर आतप व्यथा खड़ी बाजार है,
रमा रवैया में ढ़ला शोषित संचार है,
राज पद वंदना ही बना शिष्टाचार है,
कृषक कृषी तप रही ले उर अंगार है,
रमणी रंग डूबा दीनों का पैरोकार है,
भाण सब मानिंद घटा कवि सत्कार है
बिकता स्तंभ चार खरीदे सरकार है,
ए कैसा अखबार है कैसा व्यवहार है,
लोकतंत्र प्रहरी तुम सच्चे पहरेदार हो,
खरीद सके तुम्हें कौन जो खड़े बाजार हो