जीवन गीतimage source meta ai

ठाकुर प्रसाद मिश्र

Thakur Prasad Mishra

आज जीवन गीत गाकर, मृतक को जिंदा बना दो.

जो चिता की तरफ उन्मुख, उनकी फिर बस्ती बसा दो.

निविड़ जड़ तम ग्रस्त रहा जग, उससे दो दो हाथ करके.

अरुण कंपि को फिर जगाकर तिमिर की लंका जला दो.

सजल नयनों दीन बयनों से न अब नरता सुरक्षित.

भष्म कर दे दानवों को ऐसी शिव ज्वाला जगाने दो.

आज जीवन सिंधु में जो उर्मि कोलाहल बढ़ा है.

हठ में झूठे तट न टूटे गढ़ शिला उसको सजा दो.

त्याग निद्रा जाग जाओ पौरुषी भुज दंड तौलो.

काल के नतीजे भाल पर लिख कर्म की कविता सुना दो.

रचनाकार सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं, 

प्रकाशित हिंदी उपन्यास रद्दी के पन्ने

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