अरुणेश मिश्र
अपना दर्द नही कह पाया
सबका दर्द सदा गाया है ।
जब देखी वेदना विश्व की
लगा हर व्यथा में माया है ।
चिंतन में जो व्यस्त बहुत हैं
उनके चिंतन भिन्न भिन्न हैं
लेकिन बहुतों के अंतर में
स्वप्न बसे वह सब अभिन्न हैं ।
सबको है पाने की इच्छा
खोना कोई नही चाहता
निज स्वार्थों में लिप्त मिला जो
वह भी रोना नहीं चाहता ।
पीड़ाओं के बसे नगर में
डगर डगर पर छल प्रवंचना
मिली योग्यता फुटपाथों पर
भूख समेटे मिली कंचना।
चेहरे हंसते हुए दिखे जो
उनमें भी वेदना समाई
जिसे मिला वनवास अयाचित
उसको कहा गया रघुराई ।
जिसने जिससे प्रेम किया है
शायद वह उसको मिल पाया ?
कुछ राधा के मुख से गाया
कुछ मीरा ने विष में पाया ।
इतनी व्यथा देखकर हम तो
अपना दर्द नहीं कहते हैं ।
सबके दर्द लिख दिए जबसे
अपने दर्द सरस रहते हैं ।
रचनाकार- अरुणेश मिश्र, सुप्रसिद्ध साहित्यकार , पूर्व प्रधानाचार्य , सीतापुर