RamCharitManas

रामचरितमानस वैशिष्ट्य

ठाकुर प्रसाद मिश्र

मैं रघुवर का चरणामृत हूं, अवधी हिंदी श्रृंगार हूं मैं |

मैं नहीं पथिक का बट गायन, वाणी वीणा झंकार हूं मैं ||

जो अपसंस्कृति के सेवक हैं, सत पंथ जिन्हें स्वीकार नहीं |

जो स्वार्थ ,अविद्या के चाकर ,उनका मैं मुक्त विचार नहीं ||

मैं मानसरोवर गहराई, पुष्करिणी का व्यवहार नहीं |

मैं अमिय दायिनी गंगा हूं, बहते नाले की धार नहीं ||

मैं पाप विनाशक हूं प्रयाग, जो भी संगम तट आता है |

तन, वुद्धि ,प्रदूषित छुद्र  ज्ञान, तत्क्षण निर्मल हो जाता है ||

मैं पतित उद्धारक हरि-हर पद भक्तों के हृदय रसधार हूं मैं |

कलि कलुष,प्रपंची, कुटिल हृदय को शुद्ध करु आधार हूं मैं ||

गुण दोष युक्त इस ब्रह्म सृष्टि में, जो खलनायक आता है |

होता विनष्ट थोड़े दिन मे, कवि कुल हर युग में गाता है ||

मैं अनुसूया का नारि धर्म, मैं याज्ञवल्क्य की वाणी हूँ |

जिसके कारण गढ़ लंक जली, मैं वह सत् सिय क्षत्राणी हूँ ||

सबरी की नवधा भक्ति हूँ मैं, मैं गीधराज  बलसाली हूँ |

मैं रावण दर्प दहन कर्ता, मैं बानर राजा बाली हूँ ||

मैं सिंधु गर्व का नाशक हूँ और क्षमा मूर्ति श्री राम हूँ मैं |

मैं भातृ प्रेम की अमिट रेख प्रिय भरत चरित्र ललाम हूँ मैं || 

मैं रावण का सिर भंजक हूँ मैं हूँ अमोघ रघुवर सायक |

मैं सियवर यश का चारण हूँ, जो अखिल लोक के  हैं नायक ||

मैं हूँ महेश का अनल नेत्र मैं सती दहन की लीला हूँ |

मैं दक्ष यज्ञ का भंजक हूँ मैं पार्वती तपशीला हूँ ||

मैं सहज सुवाणी जन जन का कलि कलुष नाश का कर्ता हूँ |

शरणागत का अवलंब हूँ मैं इस सृष्टि का कर्ता धर्ता हूँ ||

मैं युग प्रवाह का हूँ निनाद गुण दोष विवेचन करता हूँ |

मैं तुलसी की युग वाणी हूँ सद्धर्मावाहन करता हूँ ||

मैं हूँ अंगद का अटल पांव रावण कुल का संताप हूँ मैं |

मैं हूँ सुषेण  की संजीवनी लक्ष्मण का प्रबल प्रताप हूँ मैं ||

मेरे उर में हनुमंत लला, जानते हो निश्चर मारक हैं |

जिस चरित पर है दुर्बाद बढ़ा, वह ही पालक संहारक हैं ||

लेखक हिंदी के प्रतिष्ठित  कवि हैं

प्रकाशित हिंदी उपन्यास” रद्दी के पन्ने”

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