रमेश कुमार मिश्र
आओ चलो अब बीमा करा लें, जिंदगी में खुशियाँ मना लें ।
बचत की भी कुछ बात कर लें, संग सुरक्षा साथ धर लें।।
क्यों… ?
सोचता हूँ जब शहर को, दृश्य आता है उभर कर ।
स्वार्थी संसार है, नहीं किसी को किसी से प्यार है.।।
अपने पराए पल में होते, जब चिता पर तुम हो सोते ।
संवेदना के बोल बोले, नहीं लौटते रिश्तेदार हैं।।
आओ चलो अब बीमा करा लें...
संगिनी संग तुम न होगे, नहीं होगी राशि बीमा ।
सोचो तुम कैसे जिएगी, कितने विस्तर पर मरेगी ?
बच्चे भी लाचार होंगे, न जाने कितने बाप होंगे ।
पाप से खुद को बचा लो, अपना तुम बीमा करा लो ।
शान से बच्चे पढ़ेंगे, नाम भी रोशन करेंगें
दोनों जहाँ में नाम होगा, जब एल. आई. सी का साथ होगा ।।
आओ चलो अब बीमा करा लें…
रचनाकार – दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में पी .जी व हिंदी पत्रकारिता में पी. जी डिप्लोमा हैं.