ठाकुर प्रसाद मिश्र
आज चातक की तृषा में तीव्रता का ह्रास है.
नेह नीरद से नहीं अब क्षुद्र सरिता दास है,
एक निष्ठा की कहानी विगत की स्वप्निल निशा बन.
दे रही स्वच्छंद थिरकन पर न थल पाता कहीं मन .
त्यक्त मानस सा विमल सर, पुष्करणि सायास है, … आज चातक…
काक कटुरव तीव्रतर हो नींद नयनों की उड़ाते.
पर कटे कल हंस तड़पें चाहकर भी उड़ न पाते.
टिट्टिभी के स्वर में मैना सह रही उपहास है,
आज चातक की तृषा में….
द्वेष की ज्वालामुखी में जल रहा सुखवास सारा .
शुष्क कलिका के हृदय पर मौन बैठा अलि बेचारा.
शत्-असत् के भ्रम में उलझा टूटता विस्वास है.
आज चातक की तृषा में…
सर्जना शुचि- सुरभि बीती वर्जना का रूप माली .
कांपता है विटप का उर सूखती छड़ – छड़ में डाली
त्यागती है प्राण कोयल तप रहा मधुमास है.
आज चातक की तृषा में तीव्रता का ह्रास है.
रचनाकार हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं.
प्रकाशित हिंदी उपन्यास ” रद्दी के पन्ने”