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ठाकुर प्रसाद मिश्र

उठो ब्राह्मणों तेज संभालो जग में नया प्रकाश भरो |

अविवेकी तम पसर न पाये इसका सतत विनाश करो ||

तुमने बांटा ज्ञान जगत को जन को मानव धर्म सिखाया | 

खड्ग के नहीं तुम्हारे बल पर भारत जगत गुरू कहलाया ||

शस्त्र शास्त्र दोनों कर अपने कभी भी हम भयभीत नहीं हैं |

उन पर भी करुणा बरसाते जो न देश के मीत कभी हैं ||

मांग मधूकरि खा करके भी हमने नहीं सनातन छोड़ा |

हमने वन वन में तप करके अन्यायी की बांह मरोड़ा ||

किंतु हमारे इस सत गुण को जो कायरता मान रहे हैं |

निश्चर प्रकृति जगत की स्वामी इसी की भाषा जान रहे हैं ||

दिव्य ज्ञान की दिव्य दृष्टि से तम साम्राज्य मिटाना है |

अंधकूप में गिरे हुए जो उनको बाहर लाना है ||

भोजन भट्ट आज बहुसंख्यक तप वीरों की गिनती थोड़ी |

वे बेचारे क्या जानेंगे जो बिकते हैं कौड़ी – कौड़ी ||

हक की माला जपे रात दिन कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है |

और दृष्टि डालो यदि इन पर बलिदानों में नाम नहीं है ||

लेखक हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि हैं

प्रकाशित हिंदी उपन्यास “रद्दी के पन्ने”

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