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रमेश कुमार मिश्र

धननाश मनस्ताप गृह क्लेश स्वयं का अपमान कभी किसी दूसरे को न बताएं –आचार्य चाणक्य

चंदनपुरा गांव क्षत्रियों की बहुलता वाला गांव था । गांव में अनेक जाति के मनुष्य रहते थे । य़था ब्राह्मण, यादव, बनिया, लोहार, नाई, कहार और गांव के दक्षिण दलित बस्ती थी। ठाकुर साहब के घर का दरवाजा बहुत भव्य बना व सजा हुआ था । ठाकुर भानुप्रताप दरवाजे के शनगर व्यक्तित्व के धनी थे ।दरवाजे पर कतारबद्ध पेड पौधों की शोभा निराली थी ।आम , अमरूद , आंवला, केला, करौंदा, बेल, सहतूत ,लीची, जामुन और पुष्पों में केतकी, रातरानी, गुलादाउदी, गेंदा , चमेली आदि के फूलों से पूरा का पूरा वातावरण सुगंधित रहता था । रात्रि के समय तो ठाकुर साहब के दरवाजे से उठने वाली फूलों की सुगंध से पूरा का पूरा गांव महक उठता था। इंटर कालेज के प्रवक्ता ठाकुर भानुप्रताप का बेटा धीरेंद्र मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था । उसने अपनी पसंद की लडकी से शादी पिता की राय लेकर किया था । शादी के बारह वर्षों तक भी धीरेंद्र की पत्नी को कोई औलाद नहीं हुई थी। धीरेंद्र के माता -पिता इस बात से बहुत परेशान रहते थे । इस कारण मंदिर -मंदिर मनौती भी मांगते रहते थे । लेकिन पिछले ग्यारह वर्षों में यह सब बेकार जाता रहा ।ठाकुर भानुप्रताप ने एक दिन शालिनी धीरेंद्र की पत्नी के पिता से कहा कि जानते हैं समधी  जी आजकल की औलादें हम सब को पुराने जमाने का कहकर पिछडा हुआ कहती हैं । आप तो जानते हैं कि पहले सही समय से शादी कर दी जाती थी तो समय से सामान्य तरह से बिना दवा दरपन के ही बच्चे हो जाते थे । अब अधिक उम्र में शादी का नुकसान ही नुकसान है । जब पैंतीस चालीस वर्ष की उम्र में शादी होगी तो तो फिर बिना इलाज बच्चे न होंगे और इस सब में भी दो तीन वर्ष बीत ही जाते हैं । फिर मान लीजिए किसी को चालीस की उम्र में बच्चा होता है तो फिर वह जब बारहवीं करेगा तो पिता व माता की उम्र करीब अट्ठावन- साठ होगी और ऐसे में जब बच्चे के कैरियर बनने का सही समय होगा तो माता-पिता उस पर बोझ बन रहे होंगे । कारण कि अधिक उम्र में स्वास्थ्य समस्यायें होने लगती हैं । तो बच्चा पढेगा कि माता-पिता का इलाज कराता फिरेगा ।  समधी जी दूसरी बात जब सही समय से शादी हो जाती है तो अनेक प्रकार की विसंगतियों के खतरे से समाज बच जाता है । लिव इनरिलेशन यह एक अलग तरह का व्यभिचार है । चूसो और फेंक दो की कहानी इस पर लागू होती है ।

लंबी सांस भरते हुए शालिनी के पिता जी ने कहा एकदम सही कहा समधी जी आपने । अब हम लोग अपनी ही औलाद को देख लें शालिनी और धीरेंद्र की शादी ही देख लीजिए जब इन दोनों की शादी हुई तो दामाद जी की उम्र इक्तालीस वर्ष थी और शालिनी की उन्तालीस । अब जब इनका बच्चा हुआ है तो दामाद जी की उम्र इक्यावन और शालिनी की उन्न्चास वर्ष है । अब इनका दोनों का नवजात शिशु जब 12 वीं पास करेगा तो इन दोनों की उम्र लगभग सत्तर वर्ष की होगी । ठाकुर भानु प्रताप ने कहा समधी जी बहुत डर था मन में लेकिन भगवान की विशेष कृपा है कि धीरेंद्र के औलाद हो गयी । न तो मन में यही डर बना रहता था, कि मैं अपने माता- पिता की अकेली औलाद था,और धीरेंद्र हमारी इकलौती औलाद है, कहीं उसकी औलाद न होती तो वंश आगे कैसे बढता । और अब धीरेंद्र का बच्चा भी केले इस वंशबेल को बढाएगा , कारण की धीरेंद्र ने अपनी इस औलाद के साथ ही आगे की औलाद आने का रास्ता ही बंद कर दिया । शालिनी के पिता ने हाथ जोडकर कहा कि समधी जी समय बलवान होता है ।सब कुछ का कर्ता- धर्ता ईश्वर है ।  अच्छा अब आदेश दीजिए कि हम चलें । ठाकुर भानुप्रताप ने कहा कि समधी जी हम कौन होते हैं कि आपकी बेटी के घर से आपको जाने की आज्ञा दें । आपकी बेटी का घर है आप जब तक मर्जी कहे रहिए । और हम तो कहते हैं ए पुरानी परंपरा को अब छोडिए जमाना बदल गया है । यह घर भी आप ही का है । मुझे इस बात से बहुत कष्ट होता है कि आप आने के बाद बेटी का घर कहकर यहां का कुछ खाते -पीते नहीं है । हम आपकी भावना का सम्मान करते हैं लेकिन इस बात का हमें अफसोस हमेशा बना रहता है कि हम आपकी कुछ भी खातिरदारी नहीं कर पाते हैं । आज आप जा रहे हैं तो हम रोकेंगे नहीं लेकिन एक शर्त पर कि आज से चार दिन बाद होने वाले धीरेंद्र और शालिनी के बच्चे आपके नाती के नामकरण में आप सुबह या एक दिन पहले ही आ जाएंगे यहां और अबकी बार भोजन पानी सब यहीं होगा। कारण कि अब तो आपका नाती भी इस खानदान में जन्म ले लिया है । तो अब तो आपको उसके नाते यह सब करना होगा। चलिए मैं कम से कम आपको अपने सिवान के बाहर तक तो छोड आऊं । शालिनी के पिता ने हाथ जोड कर कहा कि आपका हर आदेश पालन होगा समधी जी । आप जैसा नेक इंसान कहां मिलते हैं । और आप तकलीफ न करें हम चले जाएंगे गाडी है । ठाकुर साहब ने कहा कि यह मोटर यान भी संबंधों की प्रगाढता में बहुत बाधक बनकर खडी है । जाते -जाते शलिनी के पिता जी को ठाकुर भानुप्रताप ने फिर चेताया कि समधी जी सोमवार को ही आ जाइएगा । न तो मंगलवार के उत्सव में हम अकेले पड जाएंगे । आप तो जानते हैं कि साहब जादे मंगलवार की सुबह आ रहे हैं और गल्ती से फ्लाइट लेट हो गयी तो …. हमारे वंश बेलि का नामकरण है न चाहते हुए भी मैंने अपने पवस्त मे इज्ज्त को देखते हुए पूरे पवस्त को निमंत्रित किया है ,तो भीड तो अपरंपार ही होगी । इसलिए आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है …

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वह दिन भी आ गया जिस दिन धीरेंद्र के बेटे का नामकरण था ।सोमवार की सुबह से ही ठाकुर साहब के दरवाजे पर टेंट आदि लगना शुरू हो गया था । लोगों का आना-जाना भी शुरू हो गया था । पूरी रात घर दरवाजे की सजावट चलती रही मंगलवार की सुबह तोरण औऱ लग गए, कालीन विछ गयी। मेजों पर मेजपोश सज गए । दरवाजे के एक तरफ एक अलग से टेंट लगा था जहां पर हलावाई मिष्ठान और भोजन पकवान बना रहे थे । सारा का सारा पकवान शुध्द् देशी घी में बन रहा था । जिससे पूरे के पूरे गांव में देशी घी की खुशबू फैल रही थी । वहां आस -पास का पूरा का पूरा वातावरण खुशनुमा था । यह पूरी की पूरी व्यवस्था की निगरानी ठाकुर साहब का पुराना नौकर बरखू ही कर रहा था ।

ठाकुर भानुप्रताप दरवाजे पर पलंग पर शालिनी के पिता के संग बैठकर बार- बार रास्ते की तरफ देख रहे थे और उनसे कह रहे थे कि समधी जी अभी ग्यारह बजने को है, शालिनी और धीरेंद्र अब तक घर नहीं पहुंचे । आजकल की औलादों से तो जिम्मेदारी की उम्मीद ही छोड देनी चाहिए ।  दोनों के फोन बंद जा रहे हैं, घर दरवाजे पर सब मेहमान आ गये हैं और साहब हैं कि …। शालिनी के पिता जी ने कहा समधी जी धैर्य रखिए आते ही होंगे । ठाकुर साहब ने कहा कि हम तो एक सप्ताह पहले ही आने के लिए बोले थे , लेकिन उनकी कंपनी का टूर दरवाजे की इज्जत से ज्यादा बढकर था । समधी जी ए मल्टीनेशनल विदेशी कंपनियां मनुष्य की जिंदगी को मशीन बनाकर रख दे रही हैं ।हमारे देश के नौजवानों को मशीनीकरण में ऐसा उलझा दे रही हैं कि बहुतों पर नपुंसकता हाबी होती जा रही है । जीवन में जितना जरूरी पैसा है उतना ही जरूरी परिवार और सामाजिकता । यदि अधिक पैसे की चाह में इंसान शैतान बन जाए तो फिर जिंदगी का आनंद का क्या….. । इसी बीट बरखू दौडता, हांपता- ङांफता ठाकुर साहब के पास पहुंचा और कहा कि बाबू साहब धीरेंद्र बेटवा बहू और बच्चे के साथ आई गये हैं  । गाडी हमने देखी है । बरखू दौडकर अंदर ठकुराइन को भी बताने गये कि धीरेंद्र बाबू आ गये । एक सफेद रंग की कार हनहनाती हुई ठाकुर साहब के दरवाजे पर आकर रुक गयी। जिसमें से धीरेंद्र व उनकी पत्नी शालिनी नवजात शिशु को लेकर उतरीं । गाडी से उतरते ही धीरेंद्र ने आवाज दी बरखू कहां है । बरखू दौडकर गाडी के पास पहुंच गया । धीरेंद्र ने कहा बरखू गाडी से सामान निकालकर घर के अंदर पहुंचा दो । बरखू थोडी देर के लिए तो  धीरेंद्र का मुंह देखता रहा फिर कहा ठीक है बच्चा । उधर धीरंद्र की मां बहुत दिन बाद आयी बहू की नजर उतारने के लिए लोटे में धार लेकर आयीं और धीरेंद्र सहित शीलिनी और उनके बच्चे की परछन करने लगीं  । धीरेंद्र ने कहा मां ए पुराने चोचले बंद भी करो अब दुनिया चांद पर पहुंच गयी और तुम अभी धार और परछन में उलझी हुई हो । धीरेंद्र की मां ने कहा जिसे तुमने चोचला कहा वही हमारी विरासत और परंपरा है जो हमारी संस्कृति को मजबूत करती हैं। दुनिया आज चांद पर पहुंच रही है हम भारतवासी चांद और सूर्य को न जाने कब से पूजते हैं और उनकी ही ग्रह मंडली के भरोसे न जाने कितने टोने- टोटके उतारते रहते हैं । ऐसा है जब तू छोटा था और तुझे बुरी नजर लग जाती थी तो तेरी दादी तेरी नजर किसी जानकार को बुलाकर झडवा देतीं थी तो ठीक हो जाता था । धीरेंद्र बिना जबाब दिए आगे बढ गया ।

इधर बरखू ने कार की डिग्गी से एक-एक करके सामान निकाला और एक बडी अटैची को सिर पर रख लिय़ा । अटैची  बहुत बडी और साथ में वजन  भी ,थी और धूप भी प्रचंड थी । वह उस  अटैची  को लेकर सीढियों पर चढ ही रहा था, कि वह लडखडाकर गिर गया । बरखू गिरा और अटैची भी गिरी । अटैची गिरते ही सीढियों के कोनों से टकराकर खुल गयी । सारा सामान विखर गया । रामू दौडता हुआ घर के अंदर गया और धीरेंद्र से बोला चाचा बरखू ने अटैची गिरा दी और सारा का सारा सामान विखर गया । धीरेंद्र दौडता हुआ बाहर आया और आव देखा न ताव बरखू के गाल पर दो तमाचा यह कहते हुए रसीद कर दिया कि साले जब इस उम्र में काम नहीं होता तो काहे पडे रहते हो किसी ठाकुर के घर रोटी तोडने को ।

बरखू के गाल पर लगा तमाचा ठाकुर साहब के दिल पर जा लगा । मौके की नजाकत को भांपते हुए ठाकुर साहब ने उस समय बोलना उचित नहीं समझा । दरवाजे पर बैठे कुछ पडोसी धीरेंद्र की तारीफ में कहने लगे सही किया भैया यह साला है ही इस लायक । यह तो बहुत ही बेकार है । चाचा इस साले को सिर पर चढाए हैं । न तो यह तो धेले भर का आदमी नहीं है । इसे तो अब आप भगा ही दीजिएगा । शालिनी के पिता ने कहा भगवान के लिए अब आप सब काम पर ध्यान दीजिए , मेहमान लगातार आते जा रहे हैं ।

घर के अंदर पंडित जी नाउन से से वेदीपुरवाकर नामकरण की तैयैरी शुरू करने जा  ही रहे थे, कि शालिनी उसी पूजा में बैठने के लिए नहाकर तैयार हो रही थीं कि जोर-जोर से चिल्लाने लगीं कि मेरे पर्स से मेरी सोने की चेन गायब है । यह बात जैसे ही धीरेंद्र को पता चली तो वह आग बबूला होकर बरखू को ढूंढने लगा । सोने की चेन चोरी होने की खबर आग की तरह अंदर बाहर फैल गयी । ठाकुर साहब ने घर के अंदर जाकर बहू से कहा कि इस बात को यहीं दबा दो बहू,  घर बाहर सब मेहमान भरे हैं । इज्जत की बात है । चेन चोरी हो भी गयी होगी तो हम तुम्हें दूसरी बनवा दूंगा । शालिनी ने कहा पूरे पांच लाख की है । ऐसे कैसे चुप हो जाऊं वही आप जिसे अपना मुंह बोला भाई कहते हैं वह अटैची इसीलिए गिराया था कि कुछ लेकर चंपत हो जाए देख लीजिए । वह चेन नहीं घर की इज्जत पर हाथ डालना शुरू कर दिया ।ठाकुर साहब ने धीरेंद्र से कहा पागल मत बनो इस समय दरवाजे की इज्ज्त का भी ध्यान रखो । एक तो आज आ रहे हो इतना देर से और अब नया बखेडा ….। शालिनी ने कहा दरवाजे की इज्जत से बढकर है हमारी चेन सबको पता बी चले कि घर के अंदर कितना बडा चोर रहता है । ठाकुर साहब ने जुबान लडाना उचित नहीं समझा । वह घर के बाहर चले गए । इधर शालिनी ने रोना-चिल्लाना बंद नहीं किया । जिसके चलते धीरेंद्र बरखू के प्रति आक्रोश से भर गया । वहां उपस्थित पडोसी भी धीरेंद्र से कहने लगे कि  धीरेंद्र भैया हम लोग बहुत बार ठाकुर चाचा से कह चुके हैं कि अब  इ बरखुआ पहले वाला बरखू नहीं रह गया है । लेकिन चाचा को और कोई नहीं मिलता, और बरखू को चाचा के अलावा कोई नहीं मिलता । रोज कुछ न कुछ इस घर से अपने गमछे में बांधकर ले जाता है। उसी बीच रामू दौडता हुआ आया और धीरेंद्र से बोला भैया आप बरखू को यहां ढूंढ रहे हैं और बरखू तो गांव वाले बडे तालाब पर पीपल के पेड के नीचे बैठकर आराम फरमा रहा है । धीरेंद्र एक बार घर के अंदर गए और शलिनी से बोले एक बार सब अपना चेक कर लो कि  चेन कहीं और तो नहीं रखी हो । शालिनी ने कहा बरखू को बुलाकर पूछो बस लिया तो वही है । धीरेंद्र घर के बाहर आए और तालाब की तरफ चल दिए ।उसी बीच पडोसी शंकर ने अपने घर से लाठी भी ले लिया ।

उधर बरखू अपनी बूढी पत्नी के साथ तालाब पर बैठा एक-एक कंकड वहीं जमीन से उठा -उठाकर तालाब में फेंक रहा  था । पानी में कंकड पडने से जो गोल तरंगे तरंगायित हो रहीं थीं,वह छोटी से बडी होकर समाप्त होती जा रहीं थीं ।  बरखू बडे ध्यान से उन्हे निहार रहा था । वह सिसकते हुए अपनी पत्नी चमेली से बोला यही धीरेंद्र बाबू हैं जिन्हें हम अपने कंधे पर बैठाकर मेला दिखाने लिवा जाते थे और जब इनके सिर पर धूप लगती थी तो हम अपने सिर का गमछा उतारकर इनके सिर पर ऱख दिया करता था । आज ए सब कुछ भूल गये और हम इनके लिए बरखू दादा से बरखुआ हो गये । और तो और आज इनका थप्पड मेरे गाल पर पड गया । अंत में गरीब ही मार खाता है चमेली । गरीब के लिए दो रोटी उसके जीवन भर का सवाल बनी रहती है । गरीब दो रोटी से अधिक सोच नहीं पाता और रोटी खुद से कभी दो से चार होती  नहीं । और ए मोटे- मोटे बडे लोग ऐसा होने भी नहीं देते । रोटी का सवाल जस का तस बना ही रहता हा  है चमेली , न तो आज ए थप्पड क्यों…. । चमेली ने कहा जाने दो बाबू साहब तो हम सब को कोई इल्जाम नहीं लगाए हैं । वह तो तुम्हें भाई मानते हैं । गुस्सा थूक दो और आज बाबू साहब के घर पर काम काज की इज्जत है ,पूरी जिंदगी करके क्या फायदा जब कि आज इतने बडे खुशी के मौके पर ही तुम इस तरह नाराज हो जाओगे । एक ईंट का बडा टुक्डा पानी में फेंकते हुए बरखू ने कहा क्या खाक मानते हैं ठाकुर साहब मानते तो जब धीरेंद्र ने मेरे गाल पर थप्पड जडा  तो उसे डांटे भी नहीं । अरे तू तो भोली है रे ,ए बडे -बडे लोग हैं । चमेली ने कहा तो तुमने कौन सा उनसे अधिकार से शिकायत कर दिये । तुम भी तो मुंह फुलाकर आकर उस दिन यहां बैठ गये जिस दिन मौका है कि पेट भरकर शुद्ध देशी घी में बने पकवान खाने को मिलना है । मैं तो ठकुराइन से पहले ही बोल दी हूं कि हमें परोसा भी सबसे अधिक बढाकर देंगी । ताकि देसी घी की पूडी और लड्डू, काला, जाम हम सब कम से कम चार-पांच दिन खा सकें…..। बरखू बोला चुप हो जा भुख्कड । हमारी इज्जत से बढकर तुझे पकवान की पडी है । खबरदार….

धीरेंद्र दूर से ही चिल्लाया बरखुआ सोने की चेन कहां  है । बरखू और उसकी पत्नी चमेली दोनों अवाक  होकर धीरेंद्र को देखने लगे । बरखू ने कहा धीरेंद्र बेटवा कइसन चेन । धीरेंद्र ने कहा शालिनी की अटैची में पांच लाख की सोने की चेन थी, जो अब नहीं मिल रही है । सीधे- सीधे अब बता दे । बरखू हाथ जोडकर खडा हो गया । बोला शालिनी तो हमार बिटिया और बहू दोनों है । भला हम अपने बिटिया की चेन काहे चोरी करूंगा । शंकर बोला साला तू तो बहुत दिन का चोर है । रोज कुछ न कुछ चाचा के घर से चोरी करके ले जाता है । बरखू बोला शंकर हम तुमसे बात नाहीं करत हई ।धीरेंद्र हमार बच्चा हैं , हमार ईमानदारी जानत हैं । हम भला …

  इतने में शंकर बोला धीरेंद्र भैया देख क्या रहे हो यह लो लाठी और मार दो साले को पांच लाख की बात है । धीरेंद्र सोच ही रहा था, कि शंकर ने वहां उपस्थित लोगों को ललकार कर बरखू पर हमला करवा दिया और जब देखा कि बरखू जमीन पर गिर पडा है और खून से लथ-पथ हो गया है, तो वह वहां से निकल लिया । धीरेंद्र हाथ में डंडा लेकर खडे बरखू को निहार रहे थे कि उधर से दौडते हुए ठाकुर भानु प्रताप शालिनी और शालिनी के पिता वहां आ पहुंचे । शालिनी ने धीरेंद्र के पास जाकर उसके कान में कहा धीरेंद्र चेन मुझे मिल गयी, ऐक्चुअली हमने उसे दूसरे पर्स में डाल दिया था और जल्दी बाजी में मुझे लगा कि अटैची गिरी थी तो इसने चोरी कर लिया होगा।

  ठाकुर साबह ने धीरेंद्र के गाल पर एक जोर का तमाचा मारते हुए शहर जाकर तू तमीज और तहजीब ही भूल गया , बरखू मेरा नौकर नहीं मेरा भाई है। ठाकुर साहब बरखू का खून से लथ -पथ सिर अपनी गोद में उठाकर रख लिए । और तेजी से आवाज दिए कोई जल्दी से हमारी जीप लेकर आओ इसे डाक्टर के यहां लेकर चलो । बरखू कराहता हुआ बोला बाबू साहब हम नौकर जरूर हैं पर चोर नहीं । ठाकुर साहब ने कहा हां भाई हम जानते हैं । धीरेंद्र और शालिनी के साथ वहां बहुत से लोग सिर नीचा किए खडे थे। चमेली दहाडे मारकर बूढी आवाज में रोए जा रही  थी । गाडी आयी ठाकुर साहब ने बरखू को जीप में डाला । डाक्टर के यहां पहुंचते – पहुंचते बरखू परलोकगामी हो चुका था । चमेली का सवाल जस का तस था अब दो रोटी लाकर मुझे कौन देगा ।  तुम तो चले गये। ठाकुर साहब ने बरखू का विधिवत अंतिम संसकार किया ।

   अपने घर जाते समय शालिनी के पिता ने धीरेंद्र औऱ शालिनी से कहा तमीज, तहजीब और धैर्य से ही दुनिया चलती है । मुझे अफसोस है कि तुम दोनों ने मशीनी पढाई पढकर विदेशी कंपनियों की गुलामी कर ली और तुममें से मनुष्यता खो गयी । आगे से कुछ भी खो जाए तो सबसे पहले बिना किसी से कहे अपने आप से पूछ लो खोज लो तब जाकर कहीं किसी पर इल्जाम लगाओ, और इल्जाम लगाते समय सौ बार उस व्यक्ति के बारे में सोचो । न तो न जाने कितने बरखू तुम जैसे ना समझों की झूठी इगो और दिखावे में मारे जाएंगे ।     

रचनाकार–दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में पी .जी व हिंदी पत्रकारिता में पी. जी डिप्लोमा हैं

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