विकास आजतक image sorce meta ai

ठाकुर प्रसाद मिश्र

Thakur Prasad Mishra

आदर्शों की चिता जल रही, संस्कृति लूट रहे मतवाले.

जिसको नंदन वन समझा था, सारे फूल हैं काले – काले . 

जयकारों में चीत्कार है, ज्वलनशील बन गयी जवानी.

घटिया जीवन लोटिया डूबी, दूषित चिंतन पथ मनमानी.

इत्र छिड़कते सब महलों में, गली में कुत्ता मरा हुआ है.

ऊंची लहरें हम गिनते हैं, तल में कीचड़ भरा हुआ है.

ऐसा है विकास भारत का, सब दल नारे सड़े हुए हैं.

पंथ पूछते उन मुर्दों से,जो सड़कों पर गड़े हुए हैं.

अनगढ़ आज नियम गढ़ते हैं, उठी दृष्टि आकाश निहारें.

रमणी के चरणों में लेटें, मात -पिता को ठोकर मारें.

ऐसा है यह देश हमारा, सारे जग झंडा लहराये.

मंगल ग्रह तक चढ़ दौड़े हैं, धरा पे पंथ बना न पाये.

रचनाकार हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं.

प्रकाशित हिंदी उपन्यास ” रद्दी के पन्ने”

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