प्रकृतांक image sorce meta ai

रमेश कुमार मिश्र

Ramesh Mishra

लहर बीच सूर्य है कि सूर्य बीच लहर है.

कि जल बीच कंचन ने आभा पसारी है

दृष्टि ही पीत है कि पीत स्वर्ण दृष्टि है, 

सहज दिव्य सुषमा की दिव्य प्रतिहारी है, 

प्रकृति शक्ति प्रहरी भी पिहक  और कूक रहे, 

मानो आज गगन धरा की पीत सारी है, 

परिणय की बेला के मेला में शकुन कुल, 

बटुओं सम वेद ऋचा गगन में उचारी  है,

रचनाकार- एम. ए. हिंदी व हिन्दी पत्रकारिता पी.जी.डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से हैं

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