टीम कहानी तक“– संस्कृत जो एक समय भारत की भाषा हुआ करती थी, जिसमें चारों वेद हैं, उपनिषद हैं , पुराण हैं , रामायण व महाभारत जैसे अमिट व अद्भुत ज्ञान ग्रंथ हैं. यह अलग चर्चा का विषय हो सकता है कि वेद वैदिक संस्कृत और रामायण व महाभारत लौकिक संस्कृत में हैं.
भारत में संस्कृत भाषा में काव्य रचनाओं का खूब प्रणयन हुआ है. संस्कृत भाषा में एक से एक अद्भुत प्रणेता हुए हैं. कालिदास, भारवि, दंडी, माघ, बाणभट्ट जैसे न जाने कितने मूर्धन्यों ने संस्कृत की सेवा की है. काव्य कला के संदर्भ में कुछ विभूतियों के लिए कहा गया है कि..
उपमा कालिदासस्य भारवेर्थगौरवम्.
दंडिन: पद लालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणा:.
महाकवि कालिदास की उपमा का, कवि भारवि के बराबर अर्थ गौरव , दंडी के बराबर पद लालित्य और महाकवि माघ तो उपर्युक्त सभी कला में निपुण थे. ऐसी विभूतियों को राजनैतिक षड्यंत्र से पटल से हटाने की भरपूर कोशिश चल रही है.
संस्कृत के गर्भ से पालि, प्राकृत, अपभ्रंश अंततः हिंदी का जन्म हुआ है. हिंदी आज जो हमारी मातृभाषा है. हम उसकी जन्मदात्री संस्कृत को भी अपने ही देश में मान दे पाने में असमर्थ हैं.
षड्यंत्र का कुचक्र भारतीय संस्कृति को बार – बार पदलित करने की चेष्टा में ज्ञान स्रोत की गंगा संस्कृत पर आक्रमण कर उसे बीते कल की बात बना देना चाहता है, और आज की परिस्थितियों की बात करें तो बहुत हद तक ऐसा करने में वे षडयंत्रकारी सफल भी हैं.
करोड़ों रूपयों से मूर्ति स्थापनाओं का असली महत्व तभी स्थापित हो पाएगा जब हम अपनी सांस्कृतिक विरासत संस्कृत भाषा को भारत की भाषा बना पाने में सफल होंगे.
भारतीय राजनीति आज ऐसे कुचक्र से गुजर रही है जहाँ संस्कृत भाषा के बढावे के लिए उतना भी बजट नहीं दिया जाता है जितना कि किसी एक जिले में राजनीतिक पार्टियों का विज्ञापन का खर्च होता है. यह पश्चिम के प्रति मोह है या अपनी भाषा के प्रति उदासीनता कह नहीं सकते हैं.
जो धरती राम और कृष्ण की है उस धरती पर लोग संस्कृत पढ़ सकें इसलिए एक साहसिक प्रयास के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने संस्कृत स्कूलों में आय वर्ग का लफड़ा खत्म कर छठवीं कक्षा से लेकर उच्चतर कक्षाओं तक एक बहुत बड़ी धनराशि संस्कृत भाषा पर खर्च करने की घोषणा की है . यह ऐलान जानकर आपके दिल में स्वयं और अपने बच्चे को संस्कृत पढ़ने पढ़ाने की उत्सुकता पैदा ह़ो जाएगी. शुरुआती छठवीं कक्षा से 50/- रूपये प्रति माह है और अधिकतम प्रति छात्र उच्चतर कक्षा में शास्त्री 200 और आचार्य के छात्रों को 250 रूपये प्रति माह मिलना तयं हुआ है. चौबीस साल बाद बना यह संयोग संस्कृत भाषा पर सरकार की मेहरबानी नहीं तो और क्या है?
जब देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में संस्कृत पढ़ायी ही नहीं जा रही है तो फिर संस्कृत कौन और कैसे पढ़ पाएगा.
ए अंग्रेजी माध्यम के स्कूल हमारे ही देश में चलते हैं जनाब और बहुत से हमारी देववाणी संस्कृत को अपने ही स्कूलों में बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं. कैसे बढेगी संस्कृत? ऐसे तो एक खतरा भविष्य में और तैयार होगा. आज जो कुछ विश्वविद्यालयों में संस्कृत की जगहें हैं जब पढने वाले ही न होंगे तो फिर उनकी नौकरी कहाँ से बचेगी ? सोचिएगा फिर .. संस्कृत संस्कारों की भाषा है इसलिए ही भारत संस्कारों का देश रहा है. माता पिता अग्रज सबके प्रति सम्मान का भाव और समाज के प्रति योगत्व का भाव संस्कृत ने हमें सिखाया है. उदारचरितानाम् वसुधैव कुटुम्बकम की बलवती धारणा की माला जपकर सरकारें जो देश विदेश में अपनी पूजा करवाते हैं वह संस्कृत की ही देन है. संस्कृत निकृष्टों नहीं अपितु संभ्रातों की भाषा है इसलिए इसके रक्षण का धर्म भी संभ्रातों पर ही निर्भर करता है. उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृत प्रेम को बहुत सराहना मिल रही है. जो स्वागतयोग्य है.
प्रयुक्त फोटो साभार एआई और एक्स(x)