ठाकुर प्रसाद मिश्र
गणनायक गणपति गिरा उमा के साथ महेश ।
वन्दौं चरण समान हित ब्रह्मा विष्णु सुरेश।।
मेरा कल्पना लोक सब आप करें साकार ।
अंकुर को निज कृपा से करें बृहद आकार ।।
भीड भरा पटना स्टेशन ट्रेनों की आवाजाही से निरंतर गूंजता गडगडाहट का शोर । नर-नारी रंग-विरंगे परिधानों से लेकर ,मैले कुचैले वस्त्रों तक में इधर से उधर आते-जाते ,बच्चे बूढे जवान सब । किसी को बगल वाले की चिंता नहीं ,बिना किसी से कुछ बोले लक्ष्य तक पहुंचने की जल्दी । अमीरी और गरीबी का अनोखा संगम फिर भी धाराओं में अंतर ।
एक कृषकाय नारी गोद में लगभग डेढ साल का बच्चा लिए बडी बेसब्री से इधर –उधर देख रही है । उसकी सहज सुंदरता की चमक गरीबी की रेखा में अंगार की तरह छिप गयी थी । वह भीड से अलग हटकर स्टेशन के छोर पर बैठी हुई थी । काफी समय से न सोने के कारण आंखें लाल तथा पलकें सूजी हुई लग रही थीं । ऐसा लगता था जैसे काफी समय से वह किसी के तलाश में थी । गरीब अवश्य थीं लेकिन गंवार नहीं थी। शहर की बुराइयों- भलाइयों से अच्छी तरह वाकिफ थी । इसीलिए जब कुछ छिछोरे नौवजवान उसके आस-पास मंडराने लगे तो वह वहां से चलकर पुलिस सहायता बूथ के पास आकर बैठ गयी । एक ठेले पर टंगे रंगीन गुब्बारे देखकर बच्चा मचल उठा फिर रोने लगा । ठेले वाले को दया आ गयी उसने बच्चे को एक गुब्बारा दिया तो बच्चा खुश हो गया । वह हंसा तो उसकी नव विकसित छोटी दंतावली चमक उठी । महिला बोली रऊवां एके वापस ले लेंईं ,हमरे पइसा नइखे ।
रउंवा चिंता न करीं । हम एकरा के पइसा नाहीं लेब , जइसे राउर लइका वइसे हमरो कै बा ।
एक औरत को बात करने का मौका मिल गया । आज हफ्ते भर हो गया था घर छोडे , पास में दस बीस रूपये थे, जो थोडे -थोडे करके खत्म हो चुके थे । आज दो दिन से कुछ खाया नहीं था । शरीर थक कर चूर- चूर हो गया था । जिसे ढूंढने आय़ी थी उसका तो कुछ पता नहीं था ,हां जिससे वह हरिहर पुर का पता पूंछती वह उसे देखकर लार टपकाते हुए उल्टे उसी का पता पूंछने लगता । वह जीवन से तंग आ चुकी थी । अब उसने इस सबसे छुटकारा पाने का रास्ता मृत्यु को चुनना चाहा था । लेकिन बार-बार उसका बेटा उसके रास्ते में बाधा बन जाता था । उसका मातृत्व उसे इस बात की आज्ञा नहीं देता था कि वह अपने साथ अपने इस अबोध पुष्प को भी मृत्यु के मुख में झोंक दे । ठेले वाले की सहानुभूति से उसे कुछ आशा बंधी थी । और उसने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया । वह मुन्ने को सा के पास छोड जाएगी। कोई दयावान उसे पाल ही लेगा । उसने मुन्ने को सोता देख बेंच पर सुला दिया और ठेले वाले से पूछा ..
भइया इहंवा से गंगा जी केतना दूर हईं।
कवनो ज्यादा दूर नइखे पैदलो चलला पर डेढ घंटा के राह बा .
काहे खातिर बबूनी गंगा जी के पूछत बानी । का राउर उहां केहू रहेला ।
हां भोरे वहीं जावे के बा । एगो रिश्तेदारी बा घटवा के बगलिएं।
काहे ऐसे आइल बाडू साथे कौनो सामान सट्टा नइखे । घरवां केहू से लडाई-झगडा भइल बा का ।
नाहीं एइसन कौनों बात नइखे कुछ लोगन के साथे शहरे आइल रहलीं।..सथवै छुटि गइल हमरो सामान सट्टा उनहीं सबके पास रहि गइल बा । उहवां गइले पर सब केहू मिल जाई …।
उसकी बातें सुनकर ठेले वाले की जिज्ञसा शांत हो गयी वह अपने ग्राहक देखने लगा । थोडी देर बाद वह ठेले वाले से बोली .
भइया तनी मुन्ना पर निगाह रखिहा हम बहरी हो आयीं । ठेले वाले ने सोचा शायद वह बाथरूम जाना चाहती है वह स्नेह से बोला …
जाईं-जाईं कउनो चिंता मति करीं .. हो आईं..।
वह उठी ,आज अपने कलेजे के टुकडे को उसके भाग्य के हवाले कर एक बार जी भरकर उसे निहारा ,वह सोते समय मुस्करा रहा था । जैसे ममत्व के इस क्रूर निर्णय पर वह व्यंग्य कर रहा हो । बच्चे को उसी दशा में छोड वह निकल पडी। जल्दी से स्टेशन की सीमा लांघकर वह सडक पर आ गयी । एक पान वाले से गंगा घाट का पता पूछा , उसने उसे स्नानार्थी जानकर रास्ता बता दिया । वह जल्दी से जल्दी नदी पर जाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर देना चाहती थी । क्योंकि पुत्र विछोह का दुख भीषण ज्वाला बनकर उसके हृदय को जला रहा था । वह चाहती थी तेज चलना लेकिन उसका थका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था । जब वह गंगा घाट पर पहुंची तो भोर हो चुकी थी ,दुकानों पर चहल-पहल शुरू हो रही थी । रास्ते में दो तीन मनचलों ने उसे छेडना चाहा । वे बोले कहवां जइबू रानी…..
रानी उस औरत का नाम था वह चौंक उठी कि कहीं कोई उसको जानने वाला तो नहीं। उसने मुडकर देखा तो मनचले खीस निपोर रहे थे । उसो समझते देर नहीं लगी , वह बोली जमराज के घरे जाइब ,का रऊंओं लोग चलल चाहतानी का ..। एक लडका बोला नाहीं भाई तब तुमहंई जा…..
घाट पर इधर –उधर दो चार लोग स्नान कर रहे थे , नदी बढी हुई थी । धारा अत्यंत तीव्र थी । भय वश लोग विल्कुल ही किनारे ही स्नान करके गंगा मां की जय मनाते निकल रहे थे । उसी समय उन लोगों ने देखा कि एक लडकी ने तेज धार में छलांग लगा दी । उसका यह कृत्य देख लोग अवाक रह गये । जब तक सूचना पाकर पुलिस आयी गोताखोर आए तब तक बडी देर हो चुकी थी । उनके हाथ कुछ न लग सका । आगे का भाग शीघ्र ही इसी क्रम में ….