राष्ट्र के रत्न रतन टाटा को अश्रुपूरित नेत्रों से विदायी

राष्ट्र के रत्न रतन टाटा को अश्रुपूरित नेत्रों से विदायी

रमेश कुमार मिश्र

टाटा ग्रुप के सफल मार्गदर्शक मशहूर उद्योगपति जिंदादिल इंसान रतन टाटा ने 9 अक्टूबर को मुंबई के कैंडी अस्पताल मे आखिरी सांस ली । रतन टाटा के परलोकगामी होने की खबर फैलते ही पूरे देश में शोक की लहर फैल गयी । हर कोई ऐसे दुखी हुआ जैसे किसी ने अपना बेटा, तो किसी ने अपना भाई, तो किसी ने अपने पिता को खो दिया हो । रतन टाटा जी के देह छोड़ने पर हर कोई दुखी हो गया । हो भी क्यों न रतन टाटा व्यापारी होने के साथ-साथ एक जिंदादिल इंसान जो थे । देश और देशवासियों को दिल में रखकर जीने वाले रतन जी टाटा ने देश के हर लोगों का ध्यान रखने की कोशिश की । एक दंपति को मोटर साइकिल पर भीगते देख लाखों करोड़ों के व्यापारी का दिल संवेदना के आंसुओं से भीग गया और उन्होंने सिर्फ एक दंपति नहीं वल्कि सामान्य परिवारों के दंपति बहु के लिए एक सार्वजनिक घोषणा कर आम -आदमी की पहुंच की लखटकिया कार बनाने की स्वयं से घोषणा किया और सिर्फ घोषणा ही नहीं अपने संकल्प को जमीन पर भी उतारा । जब एक आम-आदमी के लिए कार लेना बहुत बडी चुनौती थी,  तब लखटकिया कार को बनाना करोड़ों सामान्य परिवारों के लिए यह किसी तोहफे से कम नहीं था। और इतनी जमीनी सोच के लिए रतन टाट जी को धन्यवाद  ।

मनुष्यों की पीड़ा ही रतन टाटा जी को द्रवित नहीं करती थी ,उन्हें पशुओं से बहुत अधिक प्रेम था वे कई पालतू जानवरों के संरक्षक थे । एक बार अपने एक पालतू कुत्ते के इलाज के लिए वे विदेश जा रहे थे उनके मन में आया कि हम तो सक्षम हैं  कि हम अपने इस पालतू कुत्ते का इलाज कहीं भी करा सकते हैं, लेकिन जो सक्षम न होगा तो वह तो बहुत परेशान होता होगा । इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे मुंबई में एक पालतू पशुओं के लिए अस्पताल बनाएंगे और उन्होंने ऐसा किया । एक आखबार को इंटरब्यू देते हुए उन्होंने कहा था कि “आजकल पालतू जानवर किसी भी परिवार के सदस्य से अलग नहीं है । अपने पूरे जीवन में कई पालतू जानवरों का संरक्षक होने के नाते मैं इस अस्पताल की आवश्यकता को समझता हूं”

टाटा संस और टाटा मोटर्स, टाट स्टील, टाटा कंसलटैंसी आदि को बखूबी देशी अंदाज में चलाने के साथ ही रतन टाटा जी ने देश की टाटा कंपनी को दुनिया की बड़ी कंपनियों को खरीदकर पूरी दुनिया के स्तर पर कारोबार को नई ऊंचाई प्रदान किया । जगुआर, लैंडरोवर आदि  कंपनियों को खरीदकर देश का मान ब़ढाया और वैश्विक स्तर पर अपने व्यापार के माध्यम से झंडा गाड़ दिया । घड़ी से लेकर नमक तक टाटा समूह ने उनके निर्देशन में विस्तार और नई ऊंचाई पायी ।

नये आईडिया के साथ स्टार्टप को सहायतदा देने में भी रतन टाटा जी पीछे नहीं थे । बदलते वैश्विक परिवेश के साथ रतन टाटा ने नये स्टार्टप को भी प्रोत्साहित करते हुए ओला और   पेटीएम जैसी अनेकों कंपनियों में भी उन्होंने बहुत बड़ा निवेश किया था । इससे कहा जा सकता है कि रतन टाटा जी समय के महत्व को अच्छे से पहचानते थे और उसके साथ चलने की पूरी कोशिश करते थे ।

कहते हैं खुली आंखों से दुनिया को देखते हुए दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझने वाला ही सच्चे अर्थों में मानवता का पुजारी होता है। दान देना तो रतन टाटा जी के जीवन का परमोद्देश्य था । कोबिड काल में जब पूरी दुनिया जीवन-मृत्यु के बीच झूल रही थी तब उस समय रतन टाटा जी ने भारत सरकार की झोली में लगभग डेढ़ हजार करोड़ का दान दिया ।   

 कहा जाता है कि जिससे प्रेम किया वह इन्हें मिली ही नहीं तो रतन टाटा जी शादी के बंधन में किसी और के साथ बंधे ही नहीं । उन्होंने अपने प्रेम का दायरा बड़ा किया और अपने देश, देश के लोगों और बे जुबान पशुओं से प्रेम किया । कहना न होगा कि उन्होंने अपने जीवन में जिसे सबसे अधिक महत्व दिया, वह थी सादगी । इसका एक जीता जागता उदाहरण यह था कि वह एक बार अपना जन्म दिन बेहद सादगी से अपने निजी सहायक के साथ मनाते हुए नजर आते हैं।रतन टाटा अक्सर यह कहा करते थे कि  “हमारी दादी ने हमें हर कीमत पर  गरिमा बनाए रखना सिखाया वह एक ऐसा मूल्य है जो आज तक मेरे साथ है।” मूल्य को पहचानना और उस पर चलना ही मनुष्य होने के साथ- साथ सफल होने की पहली की निशानी भी है । संवेदनाएं ही एक दूसरे को एक दूसरे से जोड़ती हैं । रतन टाटा जी खुद में संवेदनशील थे लोगों के दुख दर्द को अपना दुख समझते थे यही काऱण है कि दो दिन पहले जब वे परलोक गामी हुए तो हर किसी की आंखें नम हो गयीं और हर कोई किसी न किसी बहाने उनका अंतिम दर्शन कर लेना चाहता था । लाखों की भीड़ के बीच मुंबई में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम बिदायी दी गयी तो करोडों अरबों की भीड़ ने उन्हें और उनकी दरियादिली को याद करते हुए उनकी महापथिक आत्मा की चिर शांति के लिए नियति-नियंता से प्रार्थना किया ।       

लाखों करोड़ों के मालिक अपनी कंपनी में काम करने वाले की सेहत और जरूरत दोनों का ध्यान रखते थे ,तभी तो करीब दो साल से बीमार चल रहे अपने एक कर्मचारी का हाल-चाल लेने पुणे चले गये । उस कर्मचारी को देखने के साथ उसे हौसला देने का काम भी किया । यह काम तो रतन टाटा जैसा जिंदादिल और सहानुभूतिपरक व्यक्तित्व का धनी इंसान ही कर सकता है।

यूं तो बहुतों को जीवन मिलता है लेकिन जी कुछ ही लोग जी पाते हैं । रतन टाटा ने अपने मनुष्य जीवन को बखूबी जिया ।बेहद सरल और सादे अंदाज के धनी रतन टाटा उन लोगों के  लिए सवाल छोड़ गये कि आप धन बल में कितने भी बडे़ हों, जिएं सामान्य जीवन। रतन टाटा जी कहीं जाते थे तो बहुत सादगी से बिना ताम-झाम के उपस्थित होते थे । आज चकाचौंध की दुनिया में अवकात से आगे बढ़कर जो कुछ न होने पर भी तमाम ताम झाम को अपनाकर प्रभाव जताना चाहते हैं तो वह यह समझें कि अगर आपको रतन टाटा जैसा सम्मान पाना है तो मेहनत करें सकारात्मक रहकर काम करें और सादगी के साथ रहें  दुनिया उसी को सलाम करती है और युगों तक याद रखती है जो किसी भी क्षेत्र में बहुत बड़ा होने के बाद भी   सादगी से पेश आता है । आपको एक सहज और सादा जीवन जीते हुए सबके सुख-दुख को करीब से समझते हुए सबके प्रति उदार भाव से यथाशक्य सहज करने की कोशिश करनी चाहिए ।

 टीम कहानीतक रतन टाटा जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती है।  

लेखक –दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में पी .जी व हिंदी पत्रकारिता में पी. जी डिप्लोमा हैं

                     

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