पेरिस पैरालंपिक में अवनी लेखरा की स्वर्ण पदक जीत
टीम कहानी तक– पेरिस पैरालंपिक 30 अगस्त दिन शुक्रवार को महिलाओं के 10 मीटर एयर राइफल ( SH-1) प्रतियोगिता में अवनी लेखरा ने जीता गोल्ड. सिर्फ गोल्ड ही न जीता अपितु पेरिस पैरालंपिक 2024 में अवनी ने 249.7 अंकों के साथ एक नया कीर्तिमान भी स्थापित कर दिया है. टोक्यो पैरालंपिक के बाद अवनी ने लगातार दूसरी बार यह खिताब अपने नाम किया. कहते भी हैं कि —
कृत निश्चय से साधो तुम अपने असाध्य को साध्य करो.
इतिहास तुम्हें दोहराएगा ऐसा कुछ अद्भुत कार्य करो.
यह महज संयोग ही नहीं है कि अवनी लेखरा ने गोल्ड जीता बल्कि यह उपलब्धि बताती है कि दृढ़ संकल्प की जीत है. अवनी लेखरा उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो किसी भी तरह से अक्षम हैं. 2012 में अवनी एक कार एक्सीडेंट में चोटिल हो गयीं थीं, उस दुर्घटना में अवनी की रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट आने से उन्हें पैरालाइसिस हो गया था. घटना के महज तीन साल बाद ही अवनी ने अपने मजबूत इरादे से खेल में में अपना कैरियर बनाने का मजबूत संकल्प लिया जिसका परिणाम हम सभी के सामने है. अपने संकल्प को अवनी ने कभी अपनी समस्याओं के सामने सुस्त न पड़ने दिया.. वह लगातार प्रयास करती रहीं और इस बात पर जोर देतीं रहीं कि —
पथ शूल लाख हों दर्द नहीं हे! पैर तुम्हें चलना होगा.
बाधाओं के अंधड़ में भी तुमको कदम कदम चलना होगा.
अवनी ने यही किया और उनकी सफलता ने साफ साफ उन लोगों को बताया कि जीवन में जो परेशानी आती है इसका मतलब यह नहीं कि आप उनका सामना करने के बजाय जीवन की सांसें रोकने का प्रयास करने लगें बजाय ऐसा करने के बडी़ से बड़ी मुसीबत का जो सामना करते हैं वह अवनी लेखरा बनकर सितारों की तरह चमक उठते हैं. श्किल में जीत की जब-जब बात चलेगी तो अवनी लेखरा का नाम बड़ी सिद्दत से ऊपर लिया जाएगा.
टोक्यो पैरालंपिक में 10 मीटर महिलाओं की एयर राइफल्स SH-1 में गोल्ड व महिलाओं की 50 मीटर एयर राइफल p-3SH1 की स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारत का गौरव बढ़ाया था. अवनी किसी एक्सीडेंट को कमजोरी नहीं बनायीप बल्कि उन्होंने इस बात को मानते हुए कार्य किया कि…
निज किस्मत का रोना रोना बंद तुम्हें करना होगा.
घड़ी बंद हो जाए अगर तो चाभी भी भरना होगा.
अवनी की उपलब्धियां आज देश के मस्तक की शान बनकर सुशोभित हो रही हैं. अवनी अपनी उम्र से ज्यादा उपलब्धि अर्जित कर चुकीं हैं ,जाहिर सी बात है यह करने में उन्हें लाख कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा.
लेकिन वह कहते हैं न कि…..
“उद्यमेन ही सिद्धयंते कार्याणि न मनोरथैः ।
न ही सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगाः यान्ति ग्रसने ।”
कार्य की सिद्धि उद्मम अर्थात उसमें लगातार उत्साह के साथ श्रम व लगन से होती है केवल मन में इच्छा पालने मात्र से नहीं,यथा सोते हुए सिंह के मुंह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता है अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार करने के लिए सिंह को भी अपना भोजन ढूंढना पड़ता है. उपर्युक्त सुभाषित कार्य के प्रति निश्चय के महत्व को प्रतिपादित करता है और यह बताता है कि अगर निश्चय के साथ लगा जाता है तो एक दिन किसी भी तरह के संघर्ष पर विजय प्राप्त की जा सकती है… कहा भी गया है कि…
साहस की नौका ले पतवार धैर्य का सागर तुमको तरना होगा.
विजय श्री भी वरण करेगी निश्चय तुमको करना होगा.
कहानी तक टीम पद्मश्री अवनी लेखरा को जीत की हार्दिक बधाई देती है.