archana kaamath kee vaapasee

अरुणाकर पाण्डेय

पेरिस ओल्यमपिक्स खेलों में टेबल टेनिस के खेल में अर्चना कामथ का नाम उभर कर आया जब जर्मनी के विरुद्ध टीम इवेंट क्वार्टरफाइनल में वे एकमात्र भारतीय विजेता बनीं | लेकिन वे विनेश फोगाट की जीत के कारण उतनी चर्चित नहीं हो सकीं जितना उन्हें होना चाहिए था| वे वीमेन सिंगल खिलाड़ियों में टॉप हंड्रेड में नहीं थीं लेकिन जब पहले उन्होंने अपने कोच से मैडल जीतेने के बारे में विचार किया था तो वे उन्हें बहुत उत्साहित नहीं कर सके थे | लेकिन इसके बावजूद उनका प्रदर्शन यादगार रहा |

परन्तु तब बहुत चर्चा में अपेक्षित न रहने वाली भारत की टेबल टेनिस खिलाड़ी अर्चना कामथ को अब कुछ दिनों के लिए खबरों के केंद्र में होने की जरुरत है | इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मात्र पचीस बरस की उम्र में उन्होंने अब खेल को छोड़कर उच्च शिक्षा में वापिस जाने का निर्णय ले लिया है | वे बंगलौर में अपने ओप्थाल्मोलोजिस्ट डॉक्टर माता-पिता की संतान हैं जिन्होनें पहले अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relationship) विषय में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की हुई है | इस के साथ ही वे अपने स्कूल में हमेशा से टॉपर रही हैं | अपनी इसी अकादमिक प्रतिभा को विकसित करते हुए उन्होंने यह निर्णय लिया है कि टेबल टेनिस छोड़कर वे अब मिशिगन यूनिवर्सिटी से पब्लिक पालिसी की पढ़ाई करके भारत के लिए कुछ दमदार करना चाहती हैं | यह उनकी दूसरी मास्टर्स डिग्री होगी |

टेबल टेनिस खेलते हुए उनके मार्ग में बहुत से व्यवधान आए| 2022 के कॉमनवेल्थगेम्स में भी वे नामित की गई थीं लेकिन अदालत के द्वारा उनकी जगह किसी अन्य को भेजने का निर्णय दिया गया था | पेरिस जाने से पहले भी हवा उनके विरुद्ध बह रही थी जब दबी धीमी आवाजों में यह कहा जा रहा था कि इन्हें भेजने का निर्णय ठीक नहीं है | लेकिन अपने प्रदर्शन से उन्होंने सारे मुँह बंद कर दिए |खबरों के अनुसार जब अर्चना ने अपने कोच से ओलिंपिक मैडल जीतने के लिए उत्साह नहीं पाया तब उन्होंने यह खेल छोड़ कर एकेडमिक्स चुनने का निर्णय लिया है | लेकिन कोच का कहना कि वे पहले ही अपना मन बना चुकी थीं | इसके पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि जब उन्होंने चीनी खिलाड़ियों को स्वर्ण लेते देखा होगा तब उन्होंने आत्म विश्लेषण किया होगा और तब यह निर्णय लिया | यह ठीक है कि अर्चना कामथ का निर्णय उनका अपना है जिसे लेने का अधिकार भी उन्हें है |संभव है कि कभी उनका विचार बदल जाए जैसे विनेश फोगाट ने बदल लिया | लेकिन यह घटना भी बहुत से प्रश्न उठाती है | यह खबर जिस चर्चा की अपेक्षा रखती है, उसे वह बिलकुल भी नहीं मिली | यह कहीं पर भी उतनी चर्चा का विषय नहीं बना जितना इसे बनना चाहिए था | जब ऐसी खबरें आती हैं और लगातार उन्हें समय और स्थान दिया जाता है तब उन पर विचार भी होते हैं, बहुत से विशेषग्य अपने महत्वपूर्ण मत और सुझाव देते हैं जिसकी आवश्यकता होती है | इसके साथ यह समझने की जरुरत है कि अर्चना कामथ एक शानदार छात्रा हैं और इस आधार के लोग भारत में स्पोर्ट्स की दुनिया में बहुत कम ही होते हैं | इसका यह अर्थ होता है कि उस खेल की आवश्यकता के अनुसार वे स्वयं भी अपने प्रयास से बहुत कुछ सीख सकते हैं और आगे चलकर शोध और मार्गदर्शन के माध्यम से आने वाले खिलाड़ियों के लिए एक बेहतरीन आधार बना सकते हैं | इसके साथ यह भी समीक्षा करने और समझने की जरुरत है कि हमारे कोच जितना स्पोर्ट्स और उसके नियम इत्यादि जानते हैं, क्या वे उतना ही प्रोत्साहित करना और लगन से खेल के बारे में अध्ययन करने की कोशिश करते हैं ! इन  प्रश्नों का उत्तर खोजना आवश्यक है | लेकिन यह तो तब देखा जाए जब अर्चना कामथ दबे पाँव जाना दिखे !

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं|

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