
पान सिंह का एनकाउंटर करने वाले तात्कालीन डीएसपी एम.पी सिंह चौहान बताते हैं कि पुलिस वाले पान सिंह के नाम से कांपते थे। अपने भाई माता सिंह की हत्या के बाद उसने तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को चैलेंज कर दिया था।
सैनिक से बागी कैसे बने पान सिंह तोमर?
पान सिंह तोमर ने साल 1932 से लेकर 1 अक्टूबर, 1982 तक भारतीय सेना का हिस्सा रहे. इस दौरान उन्होंने अपनी दौड़ने की प्रतिभा पर काम किया और 1950 और 1960 के दशक में सात बार के राष्ट्रीय स्टीपलचेज़मेम्पियन बने. 1952 के एशियाई खेलों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था. ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर एक अच्छा सैनिक, मशहूर एथलीट बागी कैसे बन गया.
दरअसल, रिटायरमेंट लेने के बाद जब पान सिंह अपने पैतृक गांव लौटे तो वो भ्रष्ट सिस्टम का शिकार हो गए. उनके परिवार के सदस्यों ने उनकी ज़मीन गलत तरीके से अपने कब्जे में कर ली थी, जिसका उन्होंने विरोध किया. मगर प्रशासन ने उनके साथ सहयोग नहीं किया. विरोधियों द्वारा उनकी मां की हत्या तक कर दी गई. ऐसे में पान सिंह ने अपनी लड़ाई खुद लड़नी शुरू कर दी और बागी बनकर अपना बदला लेना शुरु कर दिया.
पुलिस वाले पान सिंह के नाम से काँपते थे?
पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक पान सिंह का एनकाउंटर करने वाले तात्कालीन डीएसपी एम.पी सिंह बताते हैं कि पान सिंह का पूरी चंबल घाटी में खौफ था. लोगों के लिए वो घाटी का शेर था. यहां तक कि खुद पुलिस वाले भी उनके नाम से कांपते थे. वहीं उनके सगे भतीजे पूर्व डकैत बलवंत सिंह तोमर अपने एक मीडिया इंटरव्यू में कहते हैं कि उनके काका बहुत खुश-दिल थे. वो सभी से हंसी-मजाक करते थे.
वो जब कंधे पर बंदूक रखकर किसी पर निशाना लगाते थे, तब उनका निशाना चूकता नहीं था. पान सिंह के बेटे शिवराम ने भी हमेशा कहा कि उनके पिता डकैत नहीं थे. उन्हें इस शब्द के इस्तेमाल से आपत्ति है. शिवराम के अनुसार उनके पिता पेशेवर अपराधी नहीं थे. वो बागी थे. हालात ने उन्हें मज़बूर किया नहीं तो वो बागी नहीं होते.
पान सिंह तोमर पर सरकार के करोड़ों रुपये हुए थे खर्च
पान सिंह को पकड़ने के लिए बीएसऍफ़ की दस कंपनिया, एसटीऍफ़ की 15 कंपनिया लगाई गई थी। इसके बाद जिला फ़ोर्स अलग थी। डकैत पान सिंह को पकड़ने के लिए सरकार के करोड़ों रुपए खर्च हुए थे। पान सिंह के दुश्मन में से एक रहे वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि पान सिंह की खौफ से वीरेंद्र 24 घंटे पुलिस साये में रहते थे।
ताश खेलने का शौक़ीन था पान सिंह तोमर
पान सिंह अपने गैंग में शामिल डाकुओं से नशा न करने की अपील करता था। पान सिंह का भतीजा बलवंत के अनुसार पान सिंह मजाकिया किस्म का इंसान था। वो बड़े बूढों से लेकर सबसे मजाक करता था। पान सिंह ताश खेलने का शौक़ीन था, उसे ताश में देहला पकड़ (ताश का एक खेल) बहुत पसंद था। पान सिंह की बेटी अट्टाकली बताती हैं कि पान सिंह फरारी के वक़्त तीन-से चार बार घर आया लेकिन वो घर पर कुछ लेकर नहीं आता था बल्कि घर से चार सौ-पांच सौ रुपया ले जाया करता था।
पान सिंह ने मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को दी थी चुनौती
1981 में पान सिंह का भाई माता दिन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया, जिसके बदले में पान सिंह ने गुर्जर समुदाय के छह लोगों की हत्या कर दी। इस घटना से एमपी की राजनीति में भूचाल आ गया। इसके बाद पान सिंह ने एमपी के तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को सीधे चैलेंज कर दिया। ये बात अर्जुन सिंह को खल गई। इसके बाद उन्होंने पान सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का फरमान सुना दिया। बाद में तात्कालीन डीएसपी ने पान सिंह के गांव के लोगों को नौकरी का लालच देकर पान सिंह को पकड़ने के लिए मुखबिरी कराई। कहते हैं कि अक्टूबर 1981 में लगभग 10000 की फ़ोर्स ने पान सिंह को घेरकर मार गिराया।
साभार : पत्रिका